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________________ अध्याय-2 जिनपूजा एक क्रमिक एवं वैज्ञानिक अनुष्ठान जिनपूजा एक क्रमिक अनुष्ठान है। किसी भी कार्य को करने के लिए उसके विषय में आवश्यक जानकारी रखना उसे करने का तरीका समझना उसके विधि-नियम जानना एवं उनका परिपालन करना अत्यावश्यक होता है। इनमें से किसी एक पक्ष को भी गौण करने पर कार्य में यथोचित सफलता प्राप्त नहीं हो सकती। लौकिक एवं व्यावसायिक क्षेत्र में तो इस नियम का पूर्ण पालन भी करते हैं। परन्तु जब धार्मिक या आध्यात्मिक क्षेत्र की बात आती है तो सब नियम विस्मृत कर दिए जाते हैं। कार्य छोटा हो या बड़ा किन्तु विधिपूर्वक करने पर ही वह पूर्णता को प्राप्त होता है। रोटी बनाने जैसा सामान्य कार्य हो, या डॉक्टर द्वारा की जा रही शल्य क्रिया (Operation) या फिर कम्प्यूटर में Software installing सभी को चरणबद्ध ही करना पड़ता है। यदि आप चाहें कि बीच की प्रक्रिया को छोड़ दें तो वह संभव नहीं है। इसी प्रकार जिनदर्शन एवं जिनपूजन सम्बन्धी विधिनियमों का भी क्रमिक वर्णन जैनाचार्यों ने किया है। यदि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जिनदर्शन जिनपूजन सम्बन्धी चर्चा करते हैं तो अधिकांश लोग इसके सही क्रम से अनभिज्ञ हैं। जिन्हें थोड़ी बहुत जानकारी है वे अपनी व्यस्तता, व्यापार आदि का बहाना देकर उसे जैसे-तैसे निपटाना चाहते हैं। किन्तु गहराई से विचारना चाहिए कि रोटी बनाना जो कि एक दैनिक आवश्यक क्रिया है, उसमें यदि रोटी बनाने की विधि का सम्यक रूप से पालन नहीं किया जाए तो क्या होगा? यदि नमक या पानी थोड़ा सा ज्यादा हो जाए, रोटी कम या अधिक सिक जाए, उसे ठीक से बेला न जाए तो वह खाने योग्य नहीं रहती, तो फिर पूजा विधि-क्रम में मनचाहा फेर बदल करने से वह समुचित परिणाम कैसे दे सकती है? इसी पहलू को ध्यान में रखकर शास्त्रकारों ने जिनदर्शन एवं जिनपूजन का एक सम्यक क्रम निर्धारित किया है, जिससे साधक आध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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