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________________ वर्तमान युग में भिक्षाचर्या का औचित्य एवं उसके नियमोपनियम ...81 आहार लेने का निषेध किया गया है। कदाचित राजा आदि का भय उत्पन्न हो जाये अथवा लोक निंदा हो जाये तब भी आहार करने का प्रतिषेध है। 'निर्दोष आहार की प्राप्ति संभव है' इस सम्बन्ध में पूर्वपक्ष और उत्तरपक्ष __ कुछ मतानुयायियों का कहना है कि इस आर्य देश में स्मृति ग्रन्थों का अनुसरण करने वाले गृहस्थ आहार बनाने सम्बन्धी सभी प्रवृत्तियाँ पुण्य के लिए ही करते हैं अर्थात अधिकांश लोग श्रमण को भिक्षा देने से होने वाले पुण्य के लिए भोजन तैयार करते हैं। इसकी सिद्धि स्मृति वचन 'गुरुदत्तशेषं भुञ्जीत'गुरु को देने के बाद बचा हुआ भोजन करना चाहिए। इस शास्त्र नीति से होती है। इसलिए गृहस्थ के घरों में श्रमण को देने के संकल्प विशेष से ही आहार तैयार किया जाता है जबकि जैन मुनि संकल्प से निर्मित भिक्षा ग्रहण नहीं कर सकता है, क्योंकि मुनि दान के संकल्प से बनाया भोजन दोष वाला होता है। यह युक्तियुक्त है किन्तु असंकल्पित गुण वाली भिक्षा युक्तियुक्त नहीं है, क्योंकि वैसा आहार होता ही नहीं है। ____ आचार्य हरिभद्रसूरि इस मत का समाधान करते हुए कहते हैं कि गृहस्थ ने अपने आहार के अतिरिक्त श्रमण के लिए अलग आहार बनाया हो तो ऐसे औद्देशिक, मिश्रजात आदि आहार का साधु को त्याग करना चाहिए, किन्तु श्रमण को देने के संकल्प पूर्वक अपने लिए आहार बनाया हो तो ऐसे औद्देशिक आहार का निषेध नहीं है। सुस्पष्ट है कि गृहस्थ ने अपने ही आहार में से श्रमण को देने का संकल्प किया हो तो ऐसे आहार में औद्देशिक आदि दोष नहीं लगते हैं, इसलिए असंकल्पित गुण वाली भिक्षा संभव है। दूसरा स्पष्टीकरण यह है कि सभी गृहस्थ केवल पुण्य के लिए आहार बनाते हैं ऐसा नहीं हैं। कुछ अपने कुटुम्बियों के लिए आहार बनाते हैं, कुछ घरों में सूतक (जन्म-मृत्यु) के समय भी अन्य दिनों की तरह ही आहार बनता है, जबकि सूतकादि के समय दान नहीं दिया जाता है। इससे सिद्ध होता है कि कुछ घरों में अपने परिवार के प्रमाणानुसार ही आहार बनता है और उसी में से दान भी दिया जाता है। तीसरा तथ्य यह है कि जिनके घरों में प्रतिदिन एक ही परिमाण में रसोई बनती है ऐसे गृहस्थ के घरों में श्रमणों को आहार देकर पुण्य अर्जित करने का
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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