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________________ 80... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन 18. भाजन संपात - आहार दाता के हाथ से भोजन पात्र गिर जाए। 19. उच्चार - आहार करते हुए मुनि के उदर से अचानक मल च्युत हो जाए। 20. प्रस्रवण - आहार के लिए उपस्थित हुए मुनि के द्वारा लघुनीति प्रवाहित होने लगे। 21. अभोज्य गृह प्रवेश - आहार की गवेषणा करते हुए मुनि का चाण्डाल आदि निषिद्ध कुलों में प्रवेश हो जाए। 22. पतन - मूर्छा या चक्कर आने से मुनि स्वयं गिर जाए। 23. उपवेशन - आहार करते हुए किसी कारणवश बैठना पड़ जाए तो उसके पश्चात आहार नहीं ले सकते हैं। 24. संदेश - भिक्षार्थ जाते समय मार्ग में कुत्ते द्वारा काट लिया जाए। 25. भूमि स्पर्श - आहार की प्रारम्भिक विधि करने के पश्चात यदि हाथ से भूमि का स्पर्श हो जाए। 26. निष्ठीवन - आहार करते हुए मुनि के मुख से थूक, कफ आदि निकल जाए। 27. उदर कृमि निर्गमन - आहार करते हुए मुनि के उदर से कृमि निकल जाए। 28. अदत्त ग्रहण - आहार लेते समय बिना दी गई वस्तु ग्रहण कर ली जाए। 29. प्रहार - आहारार्थ जाते समय यदि मुनि के ऊपर या अन्य किसी पर तलवार आदि से प्रहार हो जाए। 30. ग्रामदाह - गाँव या नगर में अग्नि आदि का उपद्रव हो जाए। 31. पादेन किंचित ग्रहण - आहार करते समय यदि पैर से कुछ ग्रहण कर लिया जाए। ___32. करेण किंचित ग्रहण - आहार करते समय मुनि के द्वारा कोई वस्तु भूमि से उठा ली जाए। उक्त स्थितियों में मुनि के लिए आहार करना वर्जित माना गया है।50 इन अन्तरायों के अतिरिक्त चाण्डाल का स्पर्श, कलह, इष्टमरण, साधर्मिक संन्यास पतन, प्रधान व्यक्ति का मरण इन स्थितियों में भी मुनि को
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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