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________________ वर्तमान युग में भिक्षाचर्या का औचित्य एवं उसके नियमोपनियम ...79 3. वमन – आहार करने वाले मुनि को उल्टी हो जाए तो दुबारा आहार नहीं लिया जा सकता है। 4. रोधन - इसी तरह भिक्षा के लिए जाते हुए मुनि को कोई रोक दें या पकड़ लें तो भी आहार करना नहीं कल्पता है। 5. रुधिर - भिक्षार्थ जाते समय मुनि को स्वयं के या अन्य किसी के शरीर से रूधिर निकलता हुआ दिख जाए। 6. अश्रुपात - आहार के लिए उपस्थित हुए मुनि के द्वारा अथवा किसी अन्य के दुःख जनित आँसू निकल आये। 7. जान्वधः परामर्श - आहार के लिए उपस्थित हो जाने के पश्चात घुटनों के नीचे का भाग स्वयं के हाथ से स्पर्शित हो जाये। ____8. जानूपरिव्यतिक्रम - आहार के लिए स्थिर हो जाने के पश्चात घुटनों से ऊपर के अवयवों का हाथ के अग्रभागों से स्पर्श हो जाए। 9. नाभ्यधो निर्गमन - भिक्षाचर्या करते समय नाभि के नीचे के भाग से निकलना पड़ जाए। ___ 10. प्रत्याख्यात सेवना - त्याग की हुई वस्तु अचानक खाने में आ जाये तो उसके पश्चात आहार नहीं ले सकते हैं। 11. जन्तुवध - भिक्षार्थ जाते हुए मुनि के द्वारा अथवा अन्य के द्वारा उनके समक्ष किसी जीव की हिंसा हो जाए। ___12. काकादिपिण्ड हरण - आहार करते हुए मुनि के हाथ से यदि कौवे आदि पक्षी ग्रास ले जाए तो उसके बाद अन्य आहार नहीं ले सकते हैं। 13. पिण्ड पतन - आहार करते हुए मुनि के हाथ से ग्रास नीचे गिर जाये तो उसके पश्चात अन्य आहार नहीं ले सकते हैं। ___14. पाणौ जन्तु वध - आहार करते हुए मुनि के पाणिपुट में कोई जन्तु स्वयं आकर मृत हो जाये तो उसके बाद अन्य आहार नहीं ले सकते हैं। 15. मांसादि दर्शन - आहार करते हुए या आहार करने से पूर्व पंचेन्द्रिय जीव के शरीर का मांस आदि दिख जाए। 16. उपसर्ग - आहार करते हुए देवकृत उपसर्ग हो जाए। 17. पादांतरे जीव - आहार करते हुए मुनि के पैरों के बीच से पंचेन्द्रिय जीव निकल जाए।
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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