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________________ वर्तमान युग में भिक्षाचर्या का औचित्य एवं उसके नियमोपनियम 59 • भिक्षार्थ गमन करते समय मार्ग में बालक, कुत्ता या बछड़ा बीच में बैठा हुआ हो तो उन्हें लांघकर या एक तरफ हटवाकर उस घर में प्रवेश न करें | 22 दशवैकालिक चूर्णि के मतानुसार बछड़े आदि को हटाने या लांघकर जाने से वह मुनि को मार सकता है, कुत्ता काट सकता है, पाड़ा मार सकता है, बछड़ा भयभीत होकर बन्धन तोड़कर मुनि के पात्र फोड़ सकता है। बालक को हटाने से उसे पीड़ा हो सकती है, उसके अभिभावकों को साधु के प्रति अप्रीति उत्पन्न हो सकती है, अत: उन्हें हटाने से शरीर और संयम दोनों की विराधना और शासन हीलना की संभावना रहती है | 23 भिक्षा स्थल सम्बन्धी नियम- भिक्षा के लिए प्रविष्ट मुनि को गृहस्थ के घर किस प्रकार खड़े रहना चाहिए ? तत्सम्बन्धी कुछ नियम इस प्रकार हैं • गृहस्थ के घर भिक्षार्थ प्रविष्ट हुआ मुनि आहार या किसी भी सजीवनिर्जीव पदार्थ को आसक्ति पूर्वक न देखें। अपनी दृष्टि को इधर-उधर न दौड़ायें, किसी भी तरफ आखें फाड़-फाड़ कर न देखें तथा भिक्षा प्राप्त न हो तो बिना कुछ बोले वहाँ से लौट जाये । इसका कारण यह है कि गृहस्थ के यहाँ रखे हुए आहार, वस्त्र या अन्य प्रसाधन आदि सामग्री को आसक्ति पूर्वक दृष्टिपात करने से ब्रह्मचर्य की विराधना होती है। लोक अपवाद है कि टकटकी लगाकर देखने वाले को काम विकार ग्रस्त माना जाता है। अतः मुनि जहाँ खड़े रहकर आहार लें और दाता जहाँ से आकर भिक्षा दें ये दोनों स्थान असंसक्त (त्रस आदि जीवों से असंकुल) होने चाहिए। इस दृष्टि से मुनि केवल असंसक्त स्थानों का ही अवलोकन करें। इसमें दूसरा हेतु यह है कि भिक्षार्थी मुनि गृहस्थ के यहाँ वहीं तक दृष्टिपात करे, जहाँ तक भिक्षा के लिए देय वस्तुएँ रखी और उठाई जाएँ, उससे आगे दीर्घ दृष्टि न डालें। घर के आंगन में दूर-दूर तक रखी गई वस्तुओं को देखने से साधु के प्रति शंका हो सकती है, इसलिए अति दूरावलोकन का निषेध किया गया है। गृहस्थ के घर में जहाँ-तहाँ रखी गई भोग्य सामग्री, आभूषण आदि को आँखें फाड़-फाड़ कर देखने से साधु के मन में भोग वासना का भाव उत्पन्न हो सकता है। एक महत्वपूर्ण हेतु यह है कि भिक्षाचरी मुनि किसी के यहाँ आहार के लिए जाए और घर में भी यदि दाता कुछ भी न दे, थोड़ा दे, नीरस वस्तु
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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