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________________ 60... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन दे या कठोर वचन कहे तो भी साधु बिना कुछ कहे चुपचाप निकल जाये। इससे समिति, गुप्ति संयम का परिपूर्ण पालन होता है और धर्म की प्रशंसा होती है। • भिक्षाटक मुनि किसी के घर में अति भूमि तक न जायें। गृहस्थ के द्वारा जहाँ तक की भूमि भिक्षाचरों के प्रवेश के लिए निषिद्ध मानी गई है उस भूमि का अतिक्रमण करना अतिभूमि कहलाता है। सभी गृहस्थों की मर्यादा एक समान नहीं होती, इसलिए साधु-साध्वी को स्वयं यह विवेक रखना चाहिए कि किस गृहस्थ की पाकशाला में कितनी दूर तक जाया जा सकता है? यह निर्णय साधु-साध्वी को प्रसिद्ध देशाचार, शिष्टाचार, कुलाचार, जाति संस्कार आदि गृहस्थों की अपेक्षा से करना चाहिए। जहाँ तक दूसरे भिक्षाचर जाते हैं वहाँ तक अथवा जहाँ तक जाने में गृहस्थ को अप्रीति न हो वहाँ तक ही जायें। • आहार हेतु प्रविष्ट हुआ मुनि गृहस्थ के यहाँ मित भूमि में खड़ा रहे। मित भूमि में भी जहाँ-तहाँ खड़ा न रहे। आचार्य शय्यंभवसूरि ने चार स्थानों पर खड़े रहने का निषेध किया है- 1. स्नानगृह- जहाँ खड़े होने पर स्नान करती हुई महिलाएँ दिखाई दें उस स्नानगृह के समक्ष खड़ा न रहे। 2. शौचालय - जहाँ खड़े होने से मल-मूत्र आदि दिखाई दें उस जगह पर खड़ा न रहे। 3. सचित्त मार्ग- जंगल या खान से निकली हुई सचित्त मिट्टी और सचित्त पानी जिस मार्ग से लाया जाता हो, उस मार्ग पर खड़ा न रहे। 4. सचित्त स्थान - जहाँ चारो ओर बीज या हरी वनस्पति बिखरी हुई हो या पैरों के नीचे रौंदी जाने की संभावना हो, ऐसी जगह भी मुनि खड़ा न रहे, क्योंकि अन्तिम दो स्थानों पर खड़े रहने से अहिंसाव्रत की विराधना होती है।24 आहार ग्रहण सम्बन्धी नियम- आहार ग्रहण करते समय शुद्ध-अशुद्ध, कल्प्य-अकल्प्य वस्तु का शोधन करना ग्रहणैषणा कहलाता है। प्रसंगानुसार कुछ नियम इस प्रकार हैं • कदाचित दाता या दात्री आहार लाते हुए या देते हुए भोज्य पदार्थ को नीचे गिरा रहे हों तो मुनि वह भिक्षा ग्रहण न करें। साधु सामाचारी के अनुसार भिक्षा देते समय कोई रस युक्त पदार्थ नीचे गिर जाये तो फिर उस घर से कुछ भी वस्तु लेना कल्प्य नहीं होता है क्योंकि इसमें जीव हिंसा की संभावना रहती है।
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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