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________________ वर्तमान युग में भिक्षाचर्या का औचित्य एवं उसके नियमोपनियम ...39 आचार्य वट्टकेर ने एक बार भोजन करने वाले मुनि के लिए आहार का समय दिन का मध्याह्नकाल बताया है। 4 दिगम्बर मुनि आहार प्राप्ति के लिए कब, किस विधिपूर्वक प्रस्थान करें? इसका निरूपण करते हुए बताया गया है कि सूर्योदय होने के दो घड़ी पश्चात आवश्यक क्रियाएँ करें, फिर स्वाध्याय करें, फिर मध्याह्न काल का देववन्दन करें। तदनन्तर बालकों के भरे हुए पेट से एवं अन्य लिंगियों से भिक्षा का समय ज्ञात करें। इसी के साथ गृहस्थ के घरों से धुआँ निकलना बन्द हो जाए एवं मूसल आदि के शब्द शान्त हो जाएं, तब गोचरी के लिए प्रवेश करना चाहिए । ' इस यान्त्रिक युग में उपरोक्त रीति से भिक्षाकाल ज्ञात करना लगभग असम्भव है। भगवती आराधना की विजयोदया टीकानुसार भिक्षार्थ मुनि को आहार काल के विषय में तीन दृष्टियों से विचार करने के पश्चात निकलना चाहिए। 1. भिक्षाकाल- अमुक गाँव आदि में, अमुक महीने में, अमुक कुल एवं अमुक मुहल्ले में अमुक समय भोजन तैयार होता है। इस प्रकार भिक्षाकाल ज्ञात कर आहारार्थ गमन करें। 2. बुभुक्षाकाल- आज मुझे तीव्र या मन्द भूख है - इस तरह स्वयं की इच्छा का निरीक्षण कर आहारार्थ गमन करें। 3. अवग्रहकाल - पूर्व दिन यह नियम ग्रहण किया था, आज मेरा यह अभिग्रह है - इस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर आहारार्थ गमन करें। " पूर्वोक्तभेदों के विचार पूर्वक भिक्षार्थ गमन करने पर निर्दोष एवं परिमित आहार की प्राप्ति होती है जिससे शुद्ध संयम का परिपालन होता है। आहार के लिए उचित स्थान आगमकारों के निर्देशानुसार जहाँ ऊर्ध्व-अधो- तिर्यक इन तीन दिशाओं में सूक्ष्म जीव और बीज आदि की संभावनाएँ न्यूनतम हों, जो स्थान प्राणी और बीज से रहित हों, ऊपर से ढँका हुआ हो तथा चारों तरफ दीवार आदि से घिरा हुआ हो वहाँ भोजन करें। 7 इस वर्णन से सूचित होता है कि जैन मुनि को खुले स्थान, खुले आकाश एवं खुले मकानों में आहार नहीं करना चाहिए।
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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