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________________ 40... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन आहार का परिमाण क्या हो? । पिण्डनियुक्ति के अनुसार पुरुष का आहार बत्तीस कवल (ग्रास) परिमाण तथा स्त्री का अट्ठाईस कवल परिमाण माना गया है। एक कवल का परिमाण बड़े आँवले जितना बतलाया गया है अथवा एक बार में जितना आहार मुख में डालने से मुख विकृत न हो उसे एक कवल मानना चाहिए। इस कथन से निश्चित होता है कि मुनि के लिए बत्तीस कवल परिमाण और साध्वी के लिए अट्ठाईस कवल परिमाण से अधिक आहार करना वर्जित है। ___ आहार का यह परिमाण शरीर एवं साधना दोनों दृष्टियों को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया गया है। शरीर के कुछ तत्व ऐसे हैं जिन्हें निश्चित मात्रा में अन्न, पानी, वायु सभी की आवश्यकता रहती है। इनका संतुलन बनाये रखने के लिए पूर्वाचार्यों का निर्देश है कि कल्पना से उदर के छह भाग करें, तीन भाग आहार से और दो भाग पानी से पूरित करें, छठा भाग वायु संचरण के लिए खाली छोड़ दें। ऋतूबद्ध काल की दृष्टि से कहा गया है कि अत्यन्त शीत काल में कल्पित छह भाग में से एक भाग पानी से पूर्ण करें और चार भाग आहार से पूर्ण करें। मध्यम शीत काल और उष्ण काल में दो भाग पानी से और तीन भाग आहार से पूरित करें तथा अत्यन्त उष्ण काल में तीन भाग पानी से और दो भाग आहार से पूर्ण करें। छठा भाग सर्वत्र वायु संचरण के लिए रखें। इसका हार्द यह है कि प्रमाणोपेत कवल के साथ-साथ शीतोष्ण काल की अपेक्षा भी आहार में न्यूनाधिकता करें। शीत काल में आहार की मात्रा और उष्ण काल में पानी की मात्रा बढ़ायी जा सकती है। ____ संक्षेप में शारीरिक तत्वों की स्थिति संतुलित एवं नियन्त्रित रहे, उस प्रकार का आहार करना चाहिए। अवशिष्ट आहार की शास्त्रोक्त व्यवस्था - पूर्वाचार्यों के निर्देशानुसार सामूहिक रूप से वितरित कर देने के पश्चात भी कुछ आहार शेष बच जाये तो ज्येष्ठ मुनि आचार्य से अनुमति प्राप्त करें और उस अवशिष्ट आहार को क्रमश: आयंबिल, उपवास आदि करने वाले मुनियों में वितरित कर दें लेकिन परिष्ठापित नहीं करें। प्रत्याख्यान के एक आगार का नाम ‘महत्तराकार' है जिसका अर्थ है- गुरु आदि पूज्यजनों की अनुमति होने तक इस तप का पालन करूँगा। तदनुसार आयंबिल आदि तपस्वी मुनियों के
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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