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________________ 38... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन शुद्ध आहार की प्राप्ति होती है। आचारांगसूत्र में एषणा कुशल मुनि के निम्न लक्षण बतलाये गये हैं वह क्षेत्रज्ञ- आहार योग्य क्षेत्र को जानने वाला हो, कालज्ञ- करणीय कृत्य के काल का ज्ञाता हो, बलज्ञ- आत्मबल का ज्ञाता हो, मात्रज्ञ- ग्राह्य वस्तु की मात्रा को जानने वाला हो, खेदज्ञ- जन्म जरा गादि से होने वाली खिन्नता (व्याकुलता) को जानने वाला हो, क्षणज्ञ- भिक्षाचर्या के अवसर का ज्ञाता हो, विनयज्ञ- ज्ञान-दर्शन-चारित्र के स्वरूप का ज्ञाता हो, स्वसमयज्ञ परसमयज्ञ-स्व-पर सिद्धान्त का ज्ञाता हो, भावज्ञ- भिक्षा दाता के मनोभावों का परीक्षक हो, परिग्रह वृत्ति के प्रति अनासक्त हो, यथोचित समय पर अनुष्ठान करने वाला हो और अप्रतिज्ञ- भोजन के प्रति संकल्प रहित हो- इन गुणों से युक्त मुनि भिक्षाटन के लिए योग्य माना गया है। शुद्ध पिण्ड का अधिकारी कौन? ___ आचार्य हरिभद्रसूरि पंचाशक प्रकरण के तेरहवें अधिकार में शुद्ध पिण्ड के अधिकारी की चर्चा करते हुए कहते हैं कि परमार्थत: बयालीस दोष रहित शुद्ध आहार की प्राप्ति प्रतिलेखना, स्वाध्याय आदि क्रियाओं में लीन रहने से होती है। प्रतिलेखनादि क्रियाओं से रहित मुनि बयालीस दोषों का परिवर्जन कर लें तब भी परमार्थ से शद्ध पिण्ड नहीं होता है क्योंकि मूलगुणों के बिना उत्तरगुणों का अनुसंचरण अर्थात पालन व्यर्थ है। ___प्रतिलेखनादि क्रिया विधियों में अनुरक्त मुनि का पिण्ड शुद्ध होता है। साधु को विशुद्ध पिण्ड ही ग्राह्य है। अशुद्ध पिण्ड के ग्रहण से संयम धर्म दुषित होता है। इसलिए प्रतिलेखनादि क्रियाओं में अनुरक्त मुनि ही शुद्ध पिण्ड का अधिकारी है तथा प्रतिलेखन आदि रूप मूलगुणों का अभ्यस्त साधु ही आहार की शुद्ध गवेषणा कर सकता है।2 आहार ग्रहण का समय __ आहार कब करना चाहिए, कितनी अवधि में करना चाहिए आदि बिन्दुओं पर चर्चा करते हुए मूलाचार में कहा गया है कि सूर्योदय होने के तीन घड़ी (चौबीस मिनिट की एक घड़ी मानी जाती है) बाद से लेकर सूर्यास्त के तीन घड़ी पूर्व तक का समय मुनियों के आहार ग्रहण का है। इस अवधि में तीन मुहूर्त तक भोजन करना जघन्य और एक मुहूर्त में भोजन कर लेना उत्कृष्ट है।'
SR No.006243
Book TitleJain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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