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________________ महापरिष्ठापनिका (अंतिम संस्कार) विधि सम्बन्धी नियम...389 में उतने ही वर्षों तक सुभिक्ष रहता है तथा शत्रु आदि के उपद्रवों का अभाव हो जाता है। इसके विपरीत यदि उसका शरीर क्षत-विक्षत हो जाता है तो उस दिशा में दुर्भिक्ष एवं शत्रु आदि के उपद्रव की पूर्ण संभावना रहती है। यदि वह मृत शरीर उसी स्थान पर अखण्ड रहता है तो सर्वत्र सुभिक्ष और सुखविहार होता है।30 ___शव के अखण्ड रहने पर वैमानिक या ज्योतिषदेव, दो भागों में विभक्त होने पर वाणव्यंतर देव और क्षत-विक्षत होने पर भवनपति देवगति में उत्पन्न हुआ जानना चाहिए। इस प्रकार मृत श्रमण के परिष्ठापन की यह विधि प्राचीन परम्परानसार दिखलाई गई है। यदि सहवर्ती मुनिगण स्वयं मृतश्रमण को स्थण्डिल भूमि में ले जाकर परिष्ठापित करें, तो उपर्युक्त विधि के सभी चरणों का अनुपालन करना चाहिए। वर्तमान में शव परिष्ठापन की परिपाटी विच्छिन्न हो गई है। अब तो गृहस्थ द्वारा अग्निसंस्कार ही किया जाता है किन्तु यह अपवाद विधि है। वर्तमान परम्परानुसार अन्तिम संस्कार की विधि निम्न प्रकार है सर्वप्रथम गुरु भगवन्त एवं उपस्थित मुनि वर्ग मृतक साधु के मस्तक पर वासचूर्ण डालते हुए संकल्पपूर्वक उन्हें स्वगच्छ से विसर्जित करें। उसके बाद श्रावक वर्ग मृतक के मुख में सोना-चांदी-तांबा-प्रवाल और मोती इन पांच रत्नों का निक्षेप कर एवं होठों को बंदकर मुख पर मुखवस्त्रिका बांधे। फिर नेत्रयुगल को बंद करें। तदनन्तर रात्रि भर रखना हो तो किसी खंभे आदि के सहारे डोरी से बाँध दें। इसी के साथ दोनों पैरों एवं दोनों हाथों के अंगूठों और अंगुलियों को भी परस्पर बांध दें, जिससे मृत देह व्यन्तराधिष्ठित न हो। जिस स्थान पर आत्म प्रदेशों का परित्याग किया है वहाँ लोहे का कीला ठोकें। शव के समीप पराक्रम आदि गुणों से युक्त साधुजन बैठे रहें। निर्भीक श्रावकगण भी रात्रिजागरण करें। तत्पश्चात वैकुण्ठी तैयार करवाएं। मृतक के दाढ़ी-मूंछ आदि की सफाई कर उसे स्नान करवायें। फिर केशर, चन्दन, कर्पूर, बरास आदि से मिश्रित द्रव्य द्वारा शरीर का विलेपन करें। फिर नवीन चोलपट्ट पहनाकर कमर को डोरी से बांधे। फिर चद्दर ओढ़ाकर वैकुण्ठी में बिठाएं। वहाँ मृतक की दायीं ओर छोटा रजोहरण और मुखवस्त्रिका रखें तथा बायीं ओर एक झोली में लड्डू सहित
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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