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________________ 388...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र या नमस्कारमन्त्र बोलें। तदनन्तर 'इस साधु का तीन करण एवं तीन योग से परित्याग कर दिया है' ऐसा तीन बार बोलें। उसके बाद किसी तरह का क्षुद्र उपद्रव न हो, उसके निवारणार्थ अन्नत्थसूत्र बोलकर चार लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में पुन: चतुर्विंशतिस्तव बोलें। द्वितीय कल्प आचार सम्बन्धी- तदनन्तर दूसरा कल्प गाँव के समीप आकर उतारें। वहाँ शुद्ध जल से भरे मात्रक को परिष्ठापित कर दें। तदनन्तर उल्टे क्रम से चद्दर ओढ़कर छोटे-बड़े के क्रम से जिनालय में प्रवेश करें। फिर रजोहरण और मुखवस्त्रिका को उल्टे क्रम से धारण कर गमनागमन में लगे हुए दोषों की आलोचना करें और ईर्यापथ प्रतिक्रमण करें। फिर उल्टे क्रम से चैत्यवंदन कर अजितशान्ति स्तव बोलें। फिर सीधे क्रम से वस्त्र पहनकर विधिपूर्वक चैत्यवंदन करें। तृतीय कल्प कंधा सम्बन्धी- तदनन्तर कंधा सम्बन्धी तीसरा कल्प वसति (उपाश्रय) में आकर उतारें। वहाँ आचार्य के समीप शव परिष्ठापन करते समय कोई अविधि हुई हो उस दोष का निवारण करने के लिए चार लोगस्ससूत्र अथवा एक नमस्कारमन्त्र का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र बोलें। यह तीन कल्प उतारने की विधि है। ___15-16 खमण और अस्वाध्याय द्वार- यदि आचार्य आदि अथवा लोक विश्रुत मुनि कालगत हो तो सर्व संघ में शोक छा जाता है, भक्त गण अधीर हो जाते हैं इसलिए उस दिन उपवास करना चाहिए और आगमसूत्रों का स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। किन्तु अन्य साधु का देहावसान होने पर न उपवास किया जाता है और न अस्वाध्यायिक होता है।29 ___ 17. अवलोकन द्वार- मृत शरीर के आधार पर शुभाशुभयोग एवं दिवंगत मुनि की शुभाशुभ गति का परिज्ञान करने के लिए आचार्य, महर्द्धिक, भक्त प्रत्याख्यानी या अन्य दीर्घतपस्वी दूसरे दिन शव परिष्ठापन दिशा का अवलोकन करें। जिस दिशा में मृतक का शरीर श्रृगाल आदि द्वारा भक्षण करने पर भी अखण्ड रहता है उस दिशा में सुभिक्ष और सुख विहार होता है, ऐसा सूत्रार्थविद कहते हैं। वह कलेवर जिस दिशा में जितने दिन तक यथावत रहता है उस दिशा
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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