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________________ . वर्षावास सम्बन्धी विधि-नियम...297 बृहत्कल्पभाष्य में वर्षावास-पर्युषण में विहार करने के निम्न तेरह कारण उल्लिखित हैं-14 1. अशिवादि-महामारी, दुर्भिक्ष, राजद्विष्ट, स्तेनभय आदि स्थितियाँ उत्पन्न होने पर उनसे छुटकारा पाने के लिए। 2. ग्लान-ग्लान की परिचर्या के लिए। 3. ज्ञान-कोई आचार्य जो अपूर्व श्रुत के ज्ञाता हों, अनशन करना चाहते हों, ___ उस श्रुत का व्यवच्छेद न हो जाए इसलिए उसे प्राप्त करने के लिए। 4. दर्शन-दर्शन शास्त्रों का अध्ययन करने के लिए। 5. चारित्र-स्त्री और एषणा सम्बन्धी दोष निवारण के लिए। 6. विष्वग् भवन-आचार्य की मृत्यु हो जाने पर तथा गण में दूसरा शिष्य आचार्य योग्य न होने पर दूसरे गण की उपसम्पदा स्वीकार करने के लिए अथवा अनशन की विशोधि के लिए। 7. प्रेषित-तात्कालिक कोई कारण उत्पन्न होने पर आचार्य के द्वारा भेजे जाने पर। 8. जल प्रवाह, अग्नि या तेज हवा से वसति भग्न हो गई हो अथवा गिरने जैसी स्थिति में पहँच गई हो। 9. संक्रामित-श्राद्धकुलों का अन्यत्र संक्रमण हो गया हो। 10. अवमान-परतीर्थिकों के आने से भोजन में कमी हो गई हो। 11. प्राणी-वसति जीव-जन्तुओं से अथवा कुंथु जीवों से संसक्त हो गई हो ___अथवा उसमें सर्प आदि आकर स्थित हो गए हों। 12. उत्थित-ग्राम उजड़ गया हो। 13. स्थण्डिल-स्थण्डिल भूमि का अभाव हो गया हो। भगवती आराधना टीका के अनुसार वर्षा योग धारण कर लेने पर भी यदि दुर्भिक्ष पड़ जाये, महामारी फैल जाये, गाँव या प्रदेश में कारणवश उथल-पुथल हो जाये, गच्छ विनाश के संकेत मिल जाये तो देशान्तर में जा सकते हैं।15 वर्षावास में विहार न करने के कारण ___ नव कल्प विहारी साधु-साध्वी का यह आचार है कि वर्षाकाल के चार मास में वे एक ही स्थान पर निवास करें। उस अवधि में एक गाँव से दूसरे गाँव विचरण न करें। आचारचूला में विहार निषेध के कारण बतलाते हुए कहा गया
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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