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________________ उपधि और उपकरण का स्वरूप एवं प्रयोजन...135 पर डालने में) उपयोगी होती है तथा रूपवती साध्वी के पीठ पर बांधकर कुबड़ी की तरह विरूप करने में भी उपयोगी होती है। इसलिए इसको कुब्जकरणी भी कहते हैं।41 ___ इस तरह पूर्वोक्त सभी प्रकार की उपधि प्रमाणोपेत ग्रहण करनी चाहिए। यह उपधि संघातिम और असंघातिम की दृष्टि से भी दो प्रकार की होती है1. संघातिम- दो या तीन वस्त्र जोड़कर या टुकड़ा जोड़कर बनायी गई उपधि संघातिम कहलाती है। 2. असंघातिम - वस्त्र, पात्र आदि अखंडित उपधि असंघातिम कहलाती है।42 औपग्रहिक उपधि के प्रकार, माप एवं प्रयोजन जो उपकरण नित्य उपयोगी न होने पर भी समय-समय संयम आराधना में सहायक बनते हैं, वे औपग्रहिक उपकरण कहलाते हैं। आचार्य हरिभद्र सरि ने औपग्रहिक उपधि तीन प्रकार की कही है- 1. जघन्य, 2. मध्यम और 3. उत्कृष्ट। __ औपग्रहिक जघन्य उपधि- औपग्रहिक जघन्य उपधि 11 प्रकार की बतायी गयी है। वह निम्नोक्त है+3 1. पीठक- काष्ठ निर्मित पट्ट या पीठिका। इसका माप लोक प्रसिद्ध है। यह पीठिका चातुर्मास में बैठने के लिए उपयोग में आती है तथा साध्वियों के उपाश्रय में पधारे हुए आचार्यादि का विनय करने के लिए आसन के रूप में सहयोगी बनती है। 2. निषद्या-बैठने का आसन। इसे पादपोंछन भी कहते हैं। यह स्वशरीर परिमाण वाला होना चाहिए। यह उपधि जिनकल्पी मुनि के पास नहीं होती है क्योंकि वे बैठते नहीं हैं। 3. दंडक- डंडा। इसका परिमाण प्रसिद्ध है। शरीर के अनुसार पादांगुष्ठ से लेकर नासिका तक लम्बा होना चाहिए। इसका उपयोग आत्मरक्षा, धर्मप्रभावना, उपद्रव निवारण आदि के लिए किया जाता है। यह उपकरण जिनकल्पी मुनि के पास नहीं होता है, क्योंकि वे उपद्रव का निवारण नहीं करते हैं। ___4. प्रमार्जनी- वसति प्रमार्जन का साधन। इसे दंडासन भी कहते हैं। इसका परिमाण प्रसिद्ध है। यह जीवरक्षा के लिए उपयोगी होती है।
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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