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________________ 134... जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन 4. अघोरूक- यह वस्त्र अर्ध जानु परिमाण का होना चाहिए । प्रयोजन- इसका उपयोग ब्रह्मचर्य के संरक्षार्थ किया जाता है | 38 5. चलनिका - यह वस्त्र कटि परिमाण का होना चाहिए । प्रयोजन- इसका उपयोग भी ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिए किया जाता है। 6. अन्तर्निवसनी - यह वस्त्र कमर से लेकर पिण्डलियों तक लम्बा होना चाहिए। 7. बहिर्निवसनी - यह वस्त्र कमर से नीचे टखनों तक लम्बा होना चाहिए। 8. कंचुकी - यह ढाई हाथ लम्बी और एक हाथ चौड़ी अथवा शरीर प्रमाण होनी चाहिए। प्रयोजन - इसका उपयोग हृदय भाग को ढँकने के लिए किया जाता है। 9. उपकक्षिका - यह डेढ़ हाथ लम्बी-चौड़ी होनी चाहिए। 10. वैकक्षिका - यह डेढ़ हाथ लम्बी-चौड़ी होनी चाहिए। प्रयोजन- पूर्वोक्त दोनों उपकरणों का प्रयोजन संयम रक्षा है | 39 11. संघाटी - वर्तमान में इसे चादर कहते हैं। साध्वी चार संघाटी (पछेवड़ी) रख सकती हैं। पहली चादर दो हाथ चौड़ी, दूसरी-तीसरी तीन हाथ चौड़ी और चौथी चार हाथ चौड़ी होनी चाहिए। चारों ही चादर लम्बाई में साढ़े तीन हाथ की होनी चाहिए। प्रयोजन - दो हाथ की चादर का उपयोग उपाश्रय में ओढ़ने के लिए करते हैं, क्योंकि साध्वी कभी खुले बदन नहीं रह सकती । तीन हाथ की एक संघाटी भिक्षा के लिये जाते समय एवं दूसरी संघाटी मलोत्सर्ग के लिए स्थण्डिल जाते समय ओढ़ने में उपयोगी होती है। चार हाथ की संघाटी का उपयोग प्रवचन या महोत्सव आदि के समय ओढ़ने में किया जाता है। साध्वी के लिए खड़े-खड़े प्रवचन सुनने का विधान है, अतः उस समय चार हाथ की संघाटी ओढ़ने पर शरीर पूर्ण रूप से ढँका हुआ रहता है । संघाटी स्निग्ध एवं कोमल वस्त्र की होनी चाहिए। 40 12. स्कंधकरणी- यह चार हाथ लम्बी और चार हाथ चौड़ी होनी चाहिए। प्रयोजन- यह पवन से उड़ती हुई संघाटी आदि की रक्षा के लिए (कंधा
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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