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________________ 136...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन ___5. घट्टक- लेपकृत पात्र को चिकना करने के लिए उसके ऊपर घिसने का एक प्रकार का पत्थर घट्टक कहलाता है। 6. डगलादि- गुह्यप्रदेश की शुद्धि के लिए उपयोगी ईंट-पत्थर आदि को डगल कहते हैं। 7. पिप्पलक- मस्तक मुंडन के लिए उपयोगी अस्त्र पिप्पलक कहा जाता है। 8. सूची- वस्त्र सीलने के लिए बांस आदि से निर्मित सुई, सूची कहलाती है। 9. नखरदनी- पत्थर निर्मित नख काटने की नरणी। 10. कर्ण शोधनक- कान का मैल निकालने में उपयोगी सली कान खोतरणी। 11. दंत शोधनक- दाँत कचरने की सली। यह साधु-साध्वी के लिए उपयोग में आने वाली न्यूनतम उपधि मानी गई है। __ औपग्रहिक मध्यम उपधि- इस औपग्रहिक मध्यम उपधि में अनेक प्रकार की उपधि का समावेश होता है जैसे कि44 1. वर्षात्राण पंचक- वर्षा से रक्षा करने वाले पाँच साधन- (i) कंबलमय- ऊन का बना हुआ, (ii) सूत्रमय- सूत का बना हुआ, (iii) सूचीमय- ताड़पत्र के सोयों का बना हुआ, (iv) कुटशीर्षक- पलासपत्र का बना हुआ और (v) छत्र-बांस का बना हुआ। इन पाँचों का परिमाण लोक प्रसिद्ध है। 2. चिलिमिलि पंचक- पाँच प्रकार के परदे - (i) सूत्रमय-सूत का परदा, (ii) ऊर्णमय-ऊन का परदा, (iii) वाक्मय- बगला आदि के पीछा का बना हुआ परदा, (iv) दंडमय- बांस आदि का गूंथा हुआ परदा और (v) कटमय- बांस की सादड़ी आदि से निर्मित परदा। उक्त पाँच प्रकार के परदे गच्छ परिमाण के अनुसार होने चाहिए। इनका उपयोग आहारादि करते समय गृहस्थ देख न सके आदि कारणों से किया जाता है। ___3. संस्तारक द्विक- शुषिर और अशुषिर- दो प्रकार के संस्तारक होते हैं। शुषिर- घास आदि का बनाया हुआ संथारा। अशुषिर-काष्ठ आदि का बनाया गया संथारा।
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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