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________________ उपधि और उपकरण का स्वरूप एवं प्रयोजन...133 उनकी सुरक्षा होती है। ओघनियुक्ति में कहा गया है कि पूर्वोक्त चार तरह के वस्त्रों में पसीना आदि के कारण जूं उत्पन्न हो गई हो और वह कंबली से सीधा शरीर को स्पर्श कर रही हो तो मर जाती है। अत: जूं आदि की रक्षा के निमित्त संथारा के ऊपर सूती और कोमल उत्तरपट्ट बिछाया जाता है। दूसरा कारण यह है कि सोने की जगह प्रमार्जना करने के उपरान्त भी कुछ सूक्ष्म जीव रह सकते हैं। ऐसी स्थिति में उत्तरपट्ट युक्त संस्तारक बिछाकर शरीर को विश्राम देने से जीव हिंसा की संभावना नहीं रहती है। इसलिए पहले संथारा फिर उसके ऊपर उत्तरपट्ट बिछाते हैं। यही प्रयोजन ऊनी एवं सूती ओघारिया के संदर्भ में भी जानना चाहिए।34 साध्वियों की उपधि का परिमाण एवं प्रयोजन जैन साध्वी के लिए पच्चीस उपकरण निर्दिष्ट हैं, उनमें से वस्त्र-पात्र आदि तेरह प्रकार की उपधि का माप पूर्ववत जानना चाहिए। शेष उपधि के प्रयोजन इस प्रकार हैं 1. कमढ़क- तुम्बे पर लेप किया गया यह पात्र कांसी की तासट की तरह होता है। एक साध्वी की क्षुधापूर्ति हो सके, उतने आहार परिमाण वाला यह पात्र प्रत्येक साध्वी के लिए अलग-अलग होता है, जिसमें वे आहार करती हैं।35 प्रयोजन- प्रत्येक साध्वी के लिए अलग-अलग कमढ़क रखने का प्रयोजन यह है कि स्त्री में जातिगत स्वभाव के कारण कलह-ईर्ष्यादि की संभावना रहती है, वह नहींवत हो जाती है। 2. अवग्रहानन्तक- अवग्रह-योनि प्रदेश, अनंतक-वस्त्र अर्थात योनिप्रदेश को ढंकने वाला वस्त्र अवग्रहानन्तक कहलाता है। यह शरीर परिमाण होना चाहिए।36 प्रयोजन- अवग्रहानन्तक का उपयोग ऋतुधर्म एवं ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए किया जाता है। यह स्निग्ध एवं गाढ़े वस्त्र का नहीं होना चाहिए तथा संख्या में एक होना चाहिए। 3. अवग्रहपट्टक- यह कमर परिमाण लम्बा और चार अंगुल चौड़ा होना चाहिए। प्रयोजन- इसका उपयोग अवग्रहानन्तक के दोनों सिरों को टिकाने के लिए तथा कमरपट्ट की तरह कमर में बांधने के लिए किया जाता है।37
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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