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________________ 116... जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन सांभोगिक के साथ उपकरणों का विधिपूर्वक परिभोग करना परिहरणा संभोग है। इसमें भी पूर्ववत चार विकल्प बनते हैं। उनमें पहला विकल्प शुद्ध है। पूर्वोल्लेखित पाँचों में से दो, तीन आदि का एक साथ प्रयोग करना संयोग संभोग है। इसमें दो के संयोग से दस, तीन के संयोग से दस, चार के संयोग से पाँच और पाँच के संयोग से एक, इस प्रकार छब्बीस भंग बनते हैं। जैसे सांभोगिक का सांभोगिक के द्वारा उद्गम और उत्पादना दोष से रहित शुद्ध उपधि ग्रहण करना-यह प्रथम भंग है। इनमें केवल साम्भोगिक वाला विकल्प शुद्ध है। 9 2. श्रुत संभोग - इस व्यवस्था के अनुसार समानकल्पी साधुओं को विधिपूर्वक शास्त्र पढ़ाना अथवा अन्य सांभोगिक के समीप जाकर शास्त्र पढ़ना श्रुत संभोग है। श्रुत संभोग रूप व्यवहार के छह प्रकार हैं- 1. वाचना 2. पृच्छना 3. प्रतिपृच्छना 4. परावर्तना 5. अनुयोगकथा और 6. संयोग विधि । 3. भक्तपान संभोग - इस व्यवस्था के अनुसार समानकल्पी साधुओं के साथ एक मंडली में बैठकर शुद्ध भोजन करना अथवा परस्पर में आहार का लेन-देन करना भक्तपान संभोग है। भक्तपान रूप व्यवहार के छह प्रकार हैं- 1. उद्गम शुद्ध 2. उत्पादना शुद्ध 3. एषणा शुद्ध 4. संभुंजन 5. निसृजन और 6. संयोग विधि। 4. अंजलि प्रग्रह संभोग - इस नियम के अनुसार समानकल्पी साधुओं में संयम पर्याय में ज्येष्ठ सांभोगिक को वन्दन आदि करना अंजलि प्रग्रह संभोग है। इसके छह स्थान हैं- 1. वन्दना - कृतिकर्म के पच्चीस प्रकारों का प्रयोग करना 2. प्रणाम - सिर झुकाकर नमन करना 3. अंजलि - दोनों हाथ जोड़कर उन्हें ललाट पर संस्थित करते हुए प्रणाम करना 4. गुरु आलाप - भक्ति और बहुमानपूर्वक भाव को अभिव्यक्त करते हुए नमन करना 5. निषद्याकरणसूत्रपौरुषी, अर्थपौरुषी और आलोचना - इन तीनों प्रयोजनों से गुरु के लिए आसन बिछाना और 6. संयोग-उपर्युक्त विकल्पों के संयोग से निष्पन्न विकल्प। सांभोगिक और अन्य सांभोगिक संविग्न साधुओं के प्रति इन सभी नियमों का पालन करने वाला साधु शुद्ध है।
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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