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________________ 76... जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन उपसंहार दसकल्प, जैन मुनि का आवश्यक आचार है। यदि इस आचार धर्म की प्राचीनता के सम्बन्ध में विचार करें तो जैनागमों में इसका मूलस्वरूप यत्र-तत्र प्राप्त हो जाता है किन्तु दसों कल्पों का युगपद् वर्णन लगभग नहीं है । जब हम आगम टीकाओं का परिशीलन करते हैं तो वहाँ आवश्यकनिर्युक्ति, निशीथभाष्य, बृहत्कल्पभाष्य, कल्पसूत्र टीका आदि में इसका विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है । जब हम परवर्ती साहित्य का अवलोकन करते हैं तो वहाँ भी भगवती आराधना, मूलाचार, पंचाशक प्रकरण आदि कुछ ग्रन्थों में यह चर्चा निश्चित रूप से है। इससे स्पष्ट है कि दस कल्प प्रत्येक तीर्थंकरों के शासन का शाश्वत आचार है और इसका स्वरूप उत्तरोत्तर विकसित रूप में देखा जाता है। तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाए तो सभी ग्रन्थों में इसका स्वरूप समान है। दिगम्बर परम्परा में भी यह कल्पधर्म मान्य है। इन्हें प्रकारान्तर से वैदिक एवं बौद्ध परम्परा में भी खोजा जा सकता है। इस सम्बन्ध में डॉ. सागरमल जैन द्वारा लिखित जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन' पठनीय है। यदि दस कल्प का निष्पक्ष दृष्टि से मनन किया जाए तो कहना होगा कि यह एक ऐसा अनमोल रसायन है जो दोष लगने पर भी और दोष मुक्त अवस्था में भी ग्राह्य है । इन दस कल्पों के वैयक्तिक एवं सामाजिक प्रभाव पर चिन्तन करें तो, इनके माध्यम से वैक्तिक जीवन में संयम के प्रति उत्साह एवं अधिक सजगता आती है। साधु एवं गृहस्थ वर्ग के सम्बन्धों में सीमा मर्यादाएँ बनी रहती हैं। औद्देशिक, शय्यातर पिण्ड आदि न लेने से गृहस्थ के मन में साधु वर्ग के प्रति अभाव नहीं आता तथा साधु में भी प्रमाद की वृद्धि नहीं होती । कृतिकर्म, ज्येष्ठकल्प आदि के पालन से विनय गुण में वृद्धि होती है और अहंकार का दमन होता है। समाज में आपसी सम्बन्धों में स्थिरता एवं मधुरता उत्पन्न होती है । मासकल्प के पालन से किसी भी स्थान या व्यक्ति विशेष के प्रति राग भाव पैदा नहीं होता एवं पर्युषणा कल्प के माध्यम से अहिंसा आदि का पालन होता है। यदि प्रबन्धन के परिप्रेक्ष्य में दस कल्पों का चिन्तन किया जाए तो यह
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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