SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 114... जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के ...... वर्णन है। 3. दीक्षाग्राही के द्वारा स्वगृह से बाहर निकलने के बाद पुनः स्वगृह की ओर मुख करके मंगलसूचक अक्षतों का निक्षेपण और तुम्हारे गृह में ऋद्धिवृद्धि हो ऐसा आशीष वचन कहे जाने का विवेचन है। 4. वर्षीदान का आचार निभाने हेतु किन वस्तुओं का दान दिया जाना चाहिए, इसका विस्तृत विवेचन किया गया है। 5. दीक्षाग्राही चतुर्विध संघ के साथ जिन चैत्य के मुख्यद्वार पर पहुँच जाये तब पुनः पोंखण - क्रिया करने का निर्देश है। 6. गीतार्थ साधु के द्वारा दीक्षा वेश पहनाया जाये, ऐसा सूचन है। 7. मुनिवेश समर्पित करने की विधि का दो बार उल्लेख है। पहली बार में चोलपट्टक-कंदोरा आदि दिये जाते हैं। दूसरी बार प्रोंछनक, मुखवस्त्रिका एवं रजोहरण प्रदान किया जाता है। दोनों समय के आलापक पाठ भिन्नभिन्न हैं। 8. चोटी ग्रहण के स्थान पर 'लोच' शब्द का प्रयोग है, किन्तु मूल सामाचारी के अनुसार केशोत्पाटन की क्रिया तीन बार करने का ही निर्देश है। 9. शुभ लग्न वेला के उपस्थित होने पर, शिष्य के अधिवासित दाहिने कर्ण में गुरु द्वारा तीन बार सर्वविरति सामायिक दण्डक कहने का उल्लेख है। इस प्रकार प्रस्तुत सामाचारी में कई विधियाँ प्रचलित परम्परा से कुछ भिन्न परिलक्षित होती हैं। सम्भवतः यह ग्रन्थकार की गुरु परम्परागत सामाचारी के आवश्यक नियम रहे होंगे। शेष विधि लगभग प्रचलित परम्परा के समतुल्य है। जिनप्रभसूरिकृत विधिमार्गप्रपा ( 14वीं शती) में प्रतिपादित दीक्षा विधि का स्वरूप पूर्व में कह चुके हैं। वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर (15वीं शती, पृ. 78-83) में दीक्षा विधि से सम्बन्धित अतिरिक्त बिन्दु इस प्रकार हैं 1. प्रव्रज्या के लिए उपस्थित हुए व्रतग्राही से ये प्रश्न किये जाने चाहिए कि तुम कौन हो ? अथवा किस प्रयोजन से दीक्षित बन रहे हो ? 2. दीक्षा विधि की क्रिया के समय शिष्य पूर्वाभिमुख होकर और गुरु उत्तराभिमुख होकर बैठें।
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy