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________________ प्रव्रज्या विधि की शास्त्रीय विचारणा... 115 3. दीक्षा की मूल विधि प्रारम्भ करने से पूर्व गुरु स्वयं के लिए और शिष्य के लिए आत्मरक्षा कवच का विधान करें । 4. सूरिमन्त्र या वर्धमानविद्या के द्वारा गन्ध को विशिष्ट विधिपूर्वक अभिमन्त्रित करें। इसमें वासाभिमन्त्रण की विशिष्ट प्रक्रिया का भी उल्लेख किया गया है। 5. नया नामकरण सात प्रकार की शुद्धि देखकर करने का निर्देश है। 6. नामकरण की प्रक्रिया सम्पन्न होने के अनन्तर दीक्षित शिष्य के दाहिने कर्ण में ‘ॐ ह्रीं हूँ नमः वीराय स्वाहा असिआउसावेवु' यह मन्त्र 21 या 7 बार सुनाने का सूचन किया गया है। ये मन्त्राक्षर ग्रन्थकार के सम्प्रदाय विशेष से सम्बन्धित हैं, ऐसा भी कथन किया गया है। 7. दीक्षा विधि की मूल क्रिया सम्पन्न हो जाने के पश्चात मुनि की दैनिक चर्या के रूप में अनुष्ठित की जाने वाली स्वाध्याय विधि, उपयोग विधि, सचित्त-अचित्तरज सम्बन्धी दोष के निवारणार्थ एवं क्षुद्रोपद्रव दोष के उपशमनार्थ कायोत्सर्ग विधि करवाने का भी उल्लेख किया गया है। उस दिन नूतन दीक्षित को ईशानकोण की ओर मुख करके 108 बार नमस्कारमन्त्र का जाप करना चाहिए, ऐसा भी कहा गया है। देववन्दन की अपेक्षा- वर्तमान सामाचारी में दीक्षा विधि की प्रारम्भिक क्रिया के अनन्तर देववन्दन विधि होती है। पंचवस्तुक, सामाचारीप्रकरण, विधिमार्गप्रपा आदि ग्रन्थों में इसका सुस्पष्ट उल्लेख है, किन्तु मतान्तर यह है कि पंचवस्तुक में देववन्दन का उल्लेख मात्र है, वह वन्दन-क्रिया कितनी स्तुतियों पूर्वक की जानी चाहिए, इस सम्बन्ध में कोई निर्देश नहीं है। इससे अनुमान होता है कि आचार्य हरिभद्रसूरि तक देववन्दन क्रिया के साथ सम्यक्त्वी देवी-देवताओं की आराधना का कोई स्थान नहीं था। सुबोधासामाचारी (पृ. 14) में क्रमश: बढ़ते हुए अक्षर वाली चार स्तुतियों के द्वारा देववन्दन करने का निर्देश है। तिलकाचार्यकृत सामाचारी (पृ. 2-6) में लगभग आठ स्तुतियों, विधिमार्गप्रपा (पृ. 1) में कुल अठारह स्तुतियों और आचारदिनकर (पृ. 80-81) में कुल आठ स्तुतियों के साथ देववन्दन करने का वर्णन है। खरतरगच्छ की वर्तमान सामाचारी में अठारह स्तुतियों से देववन्दन किया
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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