SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रव्रज्या विधि की शास्त्रीय विचारणा... 113 आचार्य हरिभद्रसूरिकृत षोडशकप्रकरण (12वीं शती) में 'दीक्षाषोडशक' नाम का एक पृथक् प्रकरण है। इस प्रकरण में दीक्षा की मूल विधि जैसे देववन्दन, रजोहरणदान, वासदान, चोटीग्रहण, सामायिकव्रतोच्चारण आदि का वर्णन नहीं है। यह प्रकरण दीक्षा विधि से सम्बन्धित अन्य बिन्दुओं की विशेष चर्चा करता है। सामान्यतया इस प्रकरण ( 12/1-16) में दीक्षा अधिकारी को जानने के उपाय, दीक्षा का अर्थ, अयोग्य को दीक्षा प्रदान करने से होने वाले अनिष्ट, दीक्षा के प्रकार, नामादि न्यास का फल, भाव दीक्षा का स्वरूप, मुनि धर्म के लक्षण आदि का सयुक्ति विवेचन है। पादलिप्ताचार्यकृत निर्वाणकलिका (11वीं शती) का दूसरा अध्याय दीक्षाविधि की दृष्टि से निःसन्देह अवलोकनीय है । उस आधार पर यह कहा जा सकता है कि आचार्य पादलिप्त ने इसमें दीक्षा विधि का उल्लेख परवर्ती ग्रन्थों एवं वर्तमान सामाचारी से बहुश: अलग हटकर किया है। इसमें वर्णित अधिकांश विधान वर्तमान की किन्हीं सामाचारियों में प्रचलित हों, ऐसा देखने, सुनने या पढ़ने में नहीं आया है। इस ग्रन्थ (पृ. 5-7 ) में मुख्यतया क्षेत्रपाल देवों को बलि अर्पण, शान्तिक कर्म विधान, दन्त धावन, भूतबलिदान, सर्वतोभद्रमण्डल विधान, पूजा विधान, गुरु को सुवर्ण की दक्षिणा, गुरु द्वारा आठ प्रकार के नियमों का अभिग्रह दान आदि का वर्णन किया गया है इससे अनुमानित है कि निर्वाणकलिका वर्णित दीक्षा विधि हिन्दू परम्परा से प्रभावित है। श्रीचन्द्राचार्यकृत सुबोधासामाचारी (12वीं शती) में दीक्षा विधि का स्वरूप प्रायः विधिमार्गप्रपा के समान ही ज्ञात होता है। अतिरिक्त बिन्दुओं का उल्लेख इन्हीं पृष्ठों पर आगे किया जा रहा है। तिलकाचार्य सामाचारी (13वीं शती) में वर्णित प्रव्रज्या विधि कुछ विशेष घटनाओं का उल्लेख करती हैं। तदनुसार इस सामाचारी (पृ. 21-22 ) में निम्न विधान विशेष रूप से प्राप्त होते हैं के 1. गुरु द्वारा दीक्षा दिन से पूर्व दिन में दीक्षाग्राही के पारिवारिक सदस्यों द्वारा लाये गये वेश के अभिमन्त्रण के साथ पटलक दिये जाने का निर्देश है। 2. दीक्षा ग्रहण के लिए गृह त्याग करने से पूर्व माता-पिता- बहन आदि के द्वारा उसकी पोंखण-क्रिया और तिलकादि मांगलिक कृत्य करने का
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy