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________________ 74...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के..... का समग्र संसार पुत्र-पुत्री में अन्तर्निहित होता है। युवक पत्नी का त्याग कर दीक्षा ग्रहण करे तथा वृद्ध पुत्र-पुत्रियों का परित्याग कर संयम स्वीकार करे तो उनके वैराग्य को गलत नहीं कहा जा सकता ठीक वैसे ही माता-पिता का मोह बन्धन को छोड़ दीक्षा ग्रहण करने वाले बालक के वैराग्य को असिद्ध कैसे किया जा सकता है ? ___ कुछ कुतर्की साधुओं पर यह आक्षेप देते हैं कि वे बालकों को प्रेरणा देकर वैराग्य के भाव जगाते हैं तो उनसे कहना यह है कि दीक्षा के लिए प्रेरित या संस्कारित करने में दोष क्या है ? मुनिजन तो युवा और वृद्ध को भी इस कार्य के लिए हर तरह से प्रतिबोधित करते रहते हैं। एक बालक क्रिकेट के बारे में कुछ नहीं जानता है उपरान्त उसे गोद में बिठाकर उससे तालियाँ बजवाते हैं, उसके बारे में समझाने का प्रयास करते हैं तब उस पाप कार्य से बचाकर आत्मकल्याण के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना अनुचित है?41 कुछ धर्मविमुख यह युक्ति देते हैं कि बाल्यकाल में संयम मार्ग पर आरूढ़ होने वाले माता-पिता का संग छूट जाने से अनाथ हो जाते हैं उन्हें ध्यान देना चाहिए कि जैन धर्म की आचारसंहिता के अनुसार माता-पिता और दीक्षार्थी की अनुमति के बाद ही दीक्षा दान किया जाता है तब वह बाल मुमुक्षु अनाथ, छोड़ा हुआ या सामान्य कैसे माना जा सकता है ? दीक्षा एक माता-पिता को छोड़कर दूसरे माता-पिता को स्वीकार करने की क्रिया है। जैसे दत्तक बालक नये मातापिता की छत्र-छाया में अनाथ या परित्यक्त नहीं कहा जाता वैसे ही नवदीक्षित बाल साधु-साध्वी भी अनाथ या त्यक्त नहीं कहे जाते। गुरु के साथ बाल साधु का सम्बन्ध पिता-पुत्र सरीखा और गुरु भाइयों के साथ भातृ सरीखा होता है। ___कुछ बालदीक्षा के प्रतिपक्षी यह कहते हैं कि 'जैन दीक्षा श्रेष्ठतम है' किन्तु छोटी उम्र में दीक्षा संस्कार नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह दुनियादारी से सर्वथा अनभिज्ञ होता है ? यहाँ प्रश्न के जवाब में प्रतिप्रश्न यह होता है कि जब दीक्षा कर्म सत्कर्म है तो उस सत्कर्म में प्रवृत्त होने के लिए शीघ्रता करनी चाहिए अथवा विलम्ब ? दूसरी बात, दीक्षा धर्म श्रेष्ठ धर्म है तो अन्य आत्माओं की तरह बालक को उसका लाभ कैसे नहीं प्राप्त होगा ? स्पष्टार्थ है कि अच्छी वस्तु जिसे जितनी शीघ्र प्राप्त हो, उसको उस वस्तु का अधिक लाभ मिलता है। इस तरह बाल दीक्षा सयुक्ति सिद्ध होती है। बालदीक्षा के विपक्षी लोग यदि यह प्रश्न उपस्थित करें कि आठ वर्ष का
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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