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________________ प्रतीकोपासना : एक दृष्टि - ललित नाहटा - - - - - - - प्रतीकोपासना को आध्यात्मिक जगत में प्रवेश की प्रारम्भिक व अत्यावश्यक अवस्था जानकर स्वीकार किया जाना चाहिए। प्रारम्भिक अवस्था में साधक को साध्य की ओर अग्रसर होने के लिए साधन/माध्यम की आवश्यकता होती है। साधना के उच्च स्तर पर पहुँचने के बाद संभव है कि कुछ महापुरुषों के लिए इन साधनों/माध्यमों का आलम्बन आवश्यक न हो, परन्तु फिर भी उन्हें यह कहने का कोई अधिकार नहीं कि इन साधनों का आश्रय लेना अनुचित है। इसी संदर्भ में स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो (अमेरिका) में आयोजित विश्व धर्म परिषद में नौवें दिन 19 सितम्बर 1893 को अपने व्याख्यान में कहा था, 'बाल्य यौवनादि का जन्मदाता है तो क्या किसी वृद्ध पुरुष को अपने बचपन या युवावस्था को पापमय या बुरा कहना उचित होगा? सभी मनुष्य जन्म से मूर्तिपूजक है और मूर्तिपूजा अच्छी चीज है, क्योंकि वह मानव प्रकृति की बनावट के अन्तर्गत है। मन में
SR No.006232
Book TitleDravya Puja Evam Bhav Puja Ka Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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