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________________ जाती है। उसी तरह श्रावक उत्कृष्ट द्रव्यों से भक्ति करके अपनी प्रीति प्रदर्शित करता है। - अंत में आचार्य श्री ने बताया कि "अपने आराध्य की पूजा के लिए स्मृति की जाती है.........स्मृति करने के दो साधन होते है - नाम और रूप......म-हा-वी-र शब्द में तो कोई गुण नहीं है, यह तो केवल चार अक्षर का अचेतन नाम है, पर महावीर का नाम मस्तिष्क में आते ही उनकी स्मृति हो जाती है...... जैसे नाम के द्वारा स्मृति होती है, वैसे ही रूप के द्वारा भी स्मृति हो जाती है। आकार-प्रकार को देखने से ज्यादा सरल तरीके से प्रभु की स्मृति हो सकती है"। इस प्रकार आचार्य श्री नाम को भी मूर्ति की तरह जड़ मानते है और मूर्ति को नाम से भी स्मृति का विशेष साधन मानते है, परन्तु उपसंहार में कहा है कि - "मेरा मानना है, कोई व्यक्ति प्रतिमा की पूजा भले ही न करे, तन्मयता से नाम स्मरण के द्वारा प्रभु की भक्ति करे तो कल्याण निश्चित है।" इस प्रकार केवल नाम को ही महत्व देते हैं। नाम और रूप से बात शुरू की और रूप की शक्ति को नाम से अधिक मानते हुए भी उपसंहार में केवल नाम-स्मरण की प्रेरणा की। इसमें उचित न्याय प्रतीत नहीं होता है, क्योंकि नाम भी जड़ है तोभीनामस्मरण की प्रेरणा की जाती है, उसी प्रकार कम से कम प्रभुदर्शन कीप्रेरणाभी की जा सकती है। अतः सभी से अनुरोध है कि इस लेख को तटस्थता से पढ़कर स्याद्वाद दृष्टि, मनोवैज्ञानिक दृष्टि, आगमिक दृष्टि एवं तर्क से द्रव्यपूजा एवं भावपूजा का समन्वय समझकर मूर्तिपूजा को सही रूप से समझने का प्रयास करें। जिनाज्ञा के विरूद्ध कुछ लिखा गया हो तो मिच्छामि दुक्कड़म्। - भूषण शाह .....0000000000.....
SR No.006232
Book TitleDravya Puja Evam Bhav Puja Ka Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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