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________________ 196/जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन इत्यादि वैयाकरणों के संकेत भी इसकी पुष्टि करते हैं । इस प्रकार भाषा के लिये भी छन्द शब्द का प्रयोग कालान्तर में होने लगा। महाभाष्य में 'अथ शब्दानुशासनम्' से उपक्रम बाँधकर 'तेषांशशब्दानां' इस प्रश्न के उत्तर में 'लौकिकानां वैदिकानाञ्चेति' इस उत्तर के माध्यम से भाषमाण शब्द के दो प्रकार सिद्ध हो जाते हैं, वैदिक और लौकिक। वेद के अर्थ में छन्द शब्द का प्रयोग महाकवि कालिदास ने भी 'प्रणवश्छन्दसामिव' रघुवंश महाकाव्य में कहकर व्यक्त किया है। जिस कविता में मात्रा एवं वर्णों के क्रम और यति' के नियम तथा कहीं चरणकी समता पायी जाती है अथवा विषमता भी हो तो उसे छन्दोबद्ध कविता कहते हैं । क्योंकि छन्द का अर्थ है बन्धन । यह कविता को सौन्दर्य प्रदान करता है । जिस प्रकार नदी के तट अपने बन्धन से धारा की गति को सुरक्षित रखते हैं, उसके बिना वह अपनी ही बन्धनहीनता में अपना प्रवाह खो बैठता है, उसी प्रकार छन्द भी अपने नियन्त्रण में राग को स्पन्दन, कल्पनादि प्रदान कर निर्जीव शब्दों में भी सौन्दर्य भर देते हैं । छन्दः शास्त्र के आचार्य : । ___प्रावीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद की छन्दोबद्धता इस शास्त्र के ऐतिह्य के पुरातनता का द्योतक है । इस शास्त्र के प्राचीनतम आचार्य पिंगल हैं । इनका समय लगभग 300 ई. पू. का है। इनका ग्रन्थ 'छन्द सूत्रम्' इस नाम से अभिहित है । इस शास्त्र के द्वितीय आचार्य कालिदास है । इनका समय ई. पू. 57 है । ' श्रुतबोध' इनकी प्रसिद्ध रचना है। क्षेमेन्द्र का भी स्थान इस शास्त्र की दृष्टि से स्तुत्य है । 1050 ई. में रचित 'सुवृत्त तिलक' का यहाँ महान् योगदान है । द्वादश शताब्दी में निर्मित 'वृत्त रत्नाकर' एक लोकप्रिय रचना है । केदार भट्ट की यह महान् देन है। 1086 - 1172 ई. लगभग की रचना 'छन्दोऽनुशासनम्' छन्दः शास्त्र में अत्युपयोगी ग्रन्थ है । आचार्य हेमचन्द्र की यह महान् देन है । गंगादास द्वारा रचित 'छन्दोमञ्जरी' एक सरल तथा प्रचलित छन्दःशास्त्र की रचना है। यह पन्द्रहवीं शताब्दी में निर्मित है । दामोदर मिश्र का 'वाणीभूषण' इस शास्त्र की दृष्टि से अनुपम है। यह सोलहवीं शताब्दी में निर्मित हुआ है। दुःखभंजन रचित उन्नीसवीं शताब्दी का 'वाग्वल्लभ' ग्रन्थ भी छन्दः शास्त्र की एक प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण रचना है ।
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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