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________________ अष्ठम अध्याय / 197 एतदतिरिक्त 'प्राकृत पैंगलम्' नामक छन्दःशास्त्र की एक अन्य रचना है, जिसके लेखक का नाम अज्ञात है। श्री महादेव भट्ट प्रणीत 'छन्दोवृत्ति' जो अष्ट अध्यायों में विरचित है, छन्दः शास्त्र .. में यह एक अपूर्ण ग्रन्थ है । भगवान् भरत का भी इन्होंने अपने शब्दों से सत्कार किया है। यह ग्रन्थ अप्रकाशित होने के कारण उपलब्ध नहीं है तथापि सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के 'सरस्वती-भवन' में विद्यमान है। उर्ध्व वर्णित आचार्यों ने स्वरूप और प्रकार आदि का जो विवेचन प्रस्तुत किया है उसकी व्यापकता में न जाकर, संक्षिप्त विवेचना कर 'जयोदय-महाकाव्य' इसकी परिधि में कितना सफल हो पाया है, का विवेचन करेंगे। ___ छन्द जिसका अपर नाम वृत्त भी है, यह समवृत्त अर्धसमवृत्त एवं विषमवृत्त' के भेद से तीन प्रकार का होता है । यह प्रायः वर्णों की लघुता एवं गुरुता के सिद्धान्त पर अपने क्षेत्र को पूर्ण करता है जिसका विश्लेषण कुछ इस प्रकार है - 1. ह्रस्व स्वर को लघु स्वर कहते हैं, जो क्रमशः अ, इ, उ, ऋ, ल हैं । 2. दीर्घ स्वर को गुरु स्वर कहते हैं, जो क्रमशः आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ है । 3. छन्द में यदि लघु स्वर के अनन्तर अनुस्वार, विसर्ग अथवा कोई संयुक्त व्यंजन होगा, वह लघु स्वर भी दीर्घ की संज्ञा से अभिहित होता है । 4. चरणान्त स्वर, छन्द की आवश्यकतानुरूप विकल्प से लघु एवं गुरु होता है । सानुस्वार, ह्रस्व, दीर्घ, विसर्ग युक्त एवं संयोग वर्ण से पूर्व वर्ण गुरु होता है । पादान्त लघु वर्ण विकल्प से गुरु होता है - "सानुस्वारश्चदीर्घश्च विसर्गौ च गुरुभवेत । वर्णः संयोग पूर्वश्च तथापादान्तगोऽपि वा ॥" 5. छन्दः शास्त्र में 'ल' को लघु एवं 'लौ' को दो लघु कहते हैं तथा 'ग' का अर्थ गुरु एवं 'गौ' का अर्थ दो गुरु होता है । लघु का चिह्न (1) होता है, एवं गुरु का चिह्न (5) होता है । चतुष्पदी पद्य के नाम से अभिहित है । श्लोक का चतुर्थंश पाद या चरण कहलाता है । वृत्त एवं जाति के भेद से यह पद्य भी दो प्रकार का होता है। प्रायः तीन वर्गों का समूह गण कहलाता है । वर्णित छन्दों की रचना गणों के आधार पर होती है । गण प्रायः आठ होते हैं, जो क्रमश इस प्रकार हैं : (1) यगण (2) मगण (3) तगण (4) रगण (5) जगण (6) भगण (7) नगण (8) सगण
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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