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________________ एकावतारी हुए हैं वे भव और पाप कहां पर भोग लिया? यदि भव घटिया एवं पुण्य बढ़ा हो तो आपका कहना मिथ्या हुआ। प्र. - यह तो हम नहीं कह सकते कि भगवान का महोत्सवादि करने से भव भ्रमण बढ़ता है। उ. - फिर तो निःशंक सिद्ध हुआ कि प्रभु पूजा पक्षालादि स्नान करने से भव घटते हैं और क्रमशः मोक्ष की प्राप्ति होती है। ___ प्र. - यदि धामधूम करने में धर्म होता तो सूरियाभ देव ने नाटक करने की भगवान से आज्ञा मांगी उस समय आज्ञा न देकर भगवान मौन क्यों रहे? उ. - नाटक करने में यदि पाप ही होता हो भगवान ने मनाई क्यों नहीं की? इससे यह निश्चय होता है कि आज्ञा नहीं दी यह तो भाषा समिति का रक्षण है। पर इन्कार भी तो नहीं किया। कारण इससे देवताओं की भक्ति का भंग भी था। वास्तव में सूत्र में भक्तिपूर्वक का पाठ होने से इसमें भक्ति धर्म का एक अंग है, इसलिये भगवान ने मौन रखा, पर मौन स्वीकृति ही समझना चाहिये। यह तो आप सोचिये कि चतुर्थ गुणस्थानवी जीवों केव्रत नियम तप संयम का तो उदय है नहीं और वे तीर्थंकर नाम कर्मोपार्जन कर सकते हैं तो इसका कारण सिवाय परमेश्वर की भक्ति के और क्या हो सकता है? प्र. - उपासक दशाङ्ग सूत्र में आनन्द काम देव के व्रतों का अधिकार है पर मूर्ति का पूजन कहीं भी नहीं लिखा है। . उ. - लिखा तो है परन्तु आपको दिखता नहीं। आनन्द ने भगवान वीर के सामने प्रतिज्ञा की है कि आज पीछे मैं अन्यतीर्थिओं और उनकी प्रतिमा तथा जिस प्रतिमा को अन्यतीर्थी ने ग्रहण कर अपना देव मान लिया हो तो उस प्रतिमा को भी मैं नमस्कार नहीं करूंगा। इससे सिद्ध है कि आनंदादि श्रावकों ने जिन प्रतिमा का वन्दन, पूजन मोक्ष का कारण समझ के ही किया था। और औत्पातिक सत्र में अंबड़ श्रावक जोर देकर कहता है कि आज पीछे मुझे अरिहन्त और अरिहन्तों की निमा का वन्दन करना ही कल्पता है। प्र.- ज्ञाता सूत्र में 20 बीस बोलों का सेवन करने से, तीर्थङ्कर गोत्र 36000 मंदिरों का संप्रति राजा ने जीर्णोद्धार करवाया था। (28
SR No.006167
Book TitleJain Dharm Me Prabhu Darshan Pujan Mandirki Manyata Thi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarmuni
PublisherJain S M Sangh Malwad
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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