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________________ प्र. - द्रौपदी की पूजा को हम प्रमाणिक नहीं मानते हैं। उ. - क्या कारण? प्र. - द्रौपदी उस समय मिथ्यात्वी अवस्था में थी। ... • उ. - खैर, इस चर्चा को रहने दीजिये। परन्तु द्रौपदी को आज करीब 87000 वर्ष हुए हैं। द्रौपदी के समय में जैन मन्दिर और जिन प्रतिमा तो विद्यमान थीं और वे मन्दिर मूर्तिआं जैनियों ने अपने आत्म कल्याणार्थ ही बनाई थी। इससे सिद्ध हुआ कि जैनों में मूर्ति का मानना प्राचीन समय से ही चला आया है । द्रौपदी के अधिकार में सुरियाभ देव का उदाहरण दिया है और राज प्रश्नीय सूत्र में सुरियाभदेव ने विस्तारपूर्वक पूजा की है। प्र. - सुरियाभ तो देवता था, उसने जीत आचार से प्रतिमा पूजी है, उसमें हम धर्म नहीं समझते हैं? . उ. - जिसमें केवली-गणधर धर्म समझे और आप कहते हो कि हम धर्म नहीं समझे तो आप पर आधार ही क्या? कि आप धर्म नहीं समझे इसमें कोई भी धर्म नहीं समझे। पर मैं पूछता हूँ कि सुरियाभ देव में गुण स्थान कौनसा है? . उ. - सम्यग्दृष्टि देवताओं में चौथा गुण स्थान है। प्र. - केवली में कौनसा गुणस्थान? उ. - तेरहवां चौदहवां गुणस्थान। प्र. - चौथा गुणस्थान और तेरहवां गुणस्थान की श्रद्धा एक है या भिन्न -भिन्न है ? उ. - श्रद्धा तो एक ही है। प्र. - जब चौथा गुणस्थान वाला प्रभु पूजा कर धर्म माने तब तेरहवां गुणस्थान वाला भी धर्म माने, फिर आप कहते हो कि हम नहीं मानते। क्या यह उत्सूत्र और अधर्म नहीं है? हम पूछते हैं कि इन्द्रों ने भगवान का मेरु पर्वत पर अभिषेकमहोत्सव किया, हजारों कलशपानी ढोला, सुरियाभादि देवताओं न पूजा की, इससे उसके भव भ्रमण बढ़ा या कम हुआ? पुण्य हुआ या पाप हुआ? यदि भव भ्रमण बढा और पाप हुआ हो तो वे सब सवा करोड़ प्रतिमाजी बनवाए व (27
SR No.006167
Book TitleJain Dharm Me Prabhu Darshan Pujan Mandirki Manyata Thi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarmuni
PublisherJain S M Sangh Malwad
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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