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________________ प्रद्युम्नचरित : रत्नचन्द्रगणि ४७७ तालवृन्तं करात् सर्वे न मुंचन्ति स्म नित्यशः । सुप्ता अति नरा नार्यो व्यत्ययेन दधुः करे ॥ १२.६७ सौवर्णरत्नालंकारान् विमुच्य स्त्रीजनोऽखिलः । धत्ते स्म कौसुमांस्तांश्च पतिवैदग्ध्यकल्पितान् ॥ १२.६८ सौन्दर्य-चित्रण प्राकृतिक सौन्दर्य की अपेक्षा मानव-सौन्दर्य कवि के लिये अधिक आकर्षक है । मानव-सौन्दर्य के प्रति कवि का यह अनुराग उसकी कलात्मक अभिरुचि का उतना द्योतक नहीं जितना उसकी परम्परा से प्रतिबद्धता का सूचक है। प्रद्युम्नचरित में पुरुष तथा नारी दोनों के सौन्दर्य-चित्रण से सरसता की सृष्टि की गयी है, यद्यपि उसमें ताज़गी का अभाव है । नारी-सौन्दर्य के चित्रण में कवि की वृत्ति अधिक रमी है। अधिकतर पात्रों के सौन्दर्य का चित्रण परम्परागत नखशिख-विधि से किया गया है। सत्यभामा, रुक्मिणी, तपस्विनी रति तथा शाम्बकुमारी के सौन्दर्य को कवि ने इसी विधि से अंकित किया है। सत्यभामा तथा रुक्मिणी के अंगों-प्रत्यंगों के चित्रण में बहुधा पूर्व-परिचित उपमानों की योजना की गयी है। रुक्मिणी के लावण्य की अभिव्यक्ति के लिये कतिपय नवीन अप्रस्तुतों को माध्यम बनाया गया है जिससे इस वर्णन में सजीवता तथा रोचकता का स्पन्दन है। जिह्वा रक्तोत्पलदलं नासा दीपशिखेव किम् । शयनास्पदमेवोच्चं गल्लो कामस्य हस्तिनः ॥ ३.१८ स्तनौ मदनबाणस्य कन्दुकाविव रेजतुः। रोमराजी विराजितस्मरबालस्य किं शिखा ॥ ३.२० मन्मथस्य रथस्यैतन्नितम्बरच क्रमेककम् । स्मरसांगणस्थेयं जघनं किमु वेदिका ॥ ३.२२ प्रथम सर्ग में सद्यःस्नाता सत्यभामा की शृंगार-सज्जा के वर्णन में विविध आभूषणों तथा प्रसाधनों से उसका सौन्दर्य प्रस्फुटित किया गया है (१.६४-६६)। शाम्बकुमारी तथा रति के चित्रण में उपर्युक्त दोनों शैलियों का मिश्रण है। पुरुष-सौन्दर्य का अंकन रुक्मी के सौन्दर्य-वर्णन के प्रसंग में हुआ है। इसमें उसके अंगलावण्य तथा सज्जा का मिश्रित चित्रण किया गया है। तावदेको दिव्यरूपश्चलत्काञ्चनकुण्डलः । २.२७ उत्फुल्लगल्लनयनोऽष्टमीचन्द्रसमालिकः । पक्वबिम्बाधरो धीरः पुष्पदन्तः प्रमोदभाक् ॥ २.२८ हारार्द्धहारविस्तारं दधानः कण्ठकन्दले। मुखे सुरभि ताम्बूलं चर्वन् स्थगीभृदर्पितम् ॥ २.२६
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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