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________________ सोमसौभाग्य : प्रतिष्ठासोम ३२६ सेर, चंग, नारंग, बुरग, घुटन, चूरण आदि देशी शब्द प्रयुक्त हुए हैं तथा कतिपय लोकोक्तियों का भी समावेश किया गया है, जो इसे रोचकता प्रदान करती हैं । कुछ सूक्तियाँ उल्लेखनीय हैं। १. दुस्सहो हि महतामिह मानभंगः । १.४४ २. स्याल्लज्जितश्च विजितश्च हि दूरवर्ती । १.५७ ३. विद्या ह्यन्तर्गतं वित्तम् । २.५० ४. महतामीहितमखिलं सफलं सम्पद्यते । ८.६३ अलंकारविधान सोमसौभाग्य गुरु के प्रति कवि की साहित्यिक श्रद्धांजलि है । चित्र-विचित्र अलंकारों के द्वारा अपनी विद्वत्ता बघारना अथवा पाठक को चमत्कृत करना उसे अभीष्ट नहीं । भावाभिव्यक्ति को विशद बनाने के लिए सोमसौभाग्य में शब्दालंकार तथा अर्थालंकार दोनों को प्रयुक्त किया गया है । अनुप्रास तथा यमक के प्रति कवि का विशेष अनुराग है। वस्तुतः काव्य के अधिकांश में इनकी अन्तर्धारा है । यह कहना अत्युक्ति न होगा कि काव्य का लालित्य एवं नाद-सौन्दर्य अनुप्रास तथा यमक की नींव पर ही आधारित है। इनके हृदयावर्जक उदाहरणों से काव्य भरा पड़ा है ! पूर्वाचार्यों की परम्परा के वर्णन में अनुप्रास का माधुर्य है। एतेभ्य इभ्येन्द्रनतेभ्य आसन् गच्छा अतुच्छा भुवि वाद्धिसंख्याः। नामानुरूपाः विमलस्वरूपाः विनम्रभूपाः शमवारिकूपाः ॥ ३.१८ प्रतिष्ठासोम का यमक अनुप्रास की भाँति ही मधुर तथा स्पष्ट है । अत: उससे काव्यबोध में बाधा नहीं आती। काव्य में अधिकतर सभंग यमक का प्रयोग किया गया है। अभिनव गच्छनायक देवसुन्दर का यह वर्णन यमक पर आधारित ये भाग्यभंगिसुभगाः सुभगानयोग्य स्फूर्जद्गुणाः श्रमणसंश्रितपादपद्माः। पद्माश्रयाः कृतसमस्तमहीविहारा ___हारा इवोरसि बभुयंतिधर्मलक्ष्म्याः ॥ ५.४. सोमसौभाग्य में श्लेष का प्रयोग कम हुआ है। कवि की सुरुचि उसे दुरूहता से बचाने में समर्थ है। निम्नोक्त पंक्तियों में पुरसुंदरियों तथा उद्यानों का श्लिष्ट वर्णन बहुत मनोरम है। रम्भाभिरामा नगरस्य यस्यारामाश्च रामाः सदृशा विरेजुः । उच्चैः सनारंगधराः प्रवालश्रियाश्रिताः पत्रलसत्कुचाढ्याः ॥ ६.१६ शब्दालंकारों की भांति अर्थालंकार भी काव्यसौन्दर्य को प्रस्फुटित करने में सहायक बने हैं । प्रस्तुत पद्य में उपमा का प्रयोग है। कुमार सोम के सद्गुणों की
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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