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________________ जैन संस्कृत महाकाव्य २८० है । हम्मीर के विपरीत वह व्यवहार कुशल, अवसरवादी तथा कूटनीति का पटु प्रयोक्ता है | योद्धा के रूप में उसकी प्रचण्डता तथा बर्बरता सर्वविदित है । दुर्गम दुर्ग, रणबांकुरे योद्धा, गगनचुम्बी पर्वत उसके सामने नहीं टिक सकते । उसने aff आदि अगणित दुर्भेद्य दुर्गे को भग्न करके त्रिपुरविजयी शंकर को भी मात कर दिया है । उसकी प्रचण्डता से भीत होकर हम्मीर का पिता जैत्रसिंह उसे नियमित रूप से कर देता था । हम्मीर ने उसका करद बनना अस्वीकार करके तत्काल उसके क्रोध को आहूत किया । वह दूसरों की दुर्बलताओं का लाभ उठाने में दक्ष है। उल्लूखान को वह उस समय रणथम्भोर पर आक्रमण करने के लिये भेजता जब हम्मीर व्रतस्थ था । वह जानता है कि बल से हम्मीर को पराजित करना दुष्कर है । ५० अलाउद्दीन धूर्तता तथा कूटनीति का आचार्य है । कार्यसिद्धि के लिए वह नैतिक-अनैतिक सभी साधनों का निस्संकोच प्रयोग करता है । जो कार्य वह बल से नहीं कर सकता, उसे छल से तत्काल कर देता है । चिरकालीन गढरोध के पश्चात् भी हम्मीर को जीतने में सफल न होकर वह उसके सेनानी रतिपाल को और उसके माध्यम से रणमल्ल तथा कोठारी जाड्ड़ को फोड़ लेता है । वह रतिपाल को अन्तः र में ले जाकर अपनी बहिन के हाथ से मदिरा पिलवाता है और उसके सामने आंचल पसार कर यहाँ तक कह देता है - एतद् राज्यं तवैवास्तु जयेच्छुः केवलं त्वहम् (१३।७७) । वह मानव स्वभाव को खूब समझता है । इसीलिये कार्य सिद्ध होने पर वह रतिपाल की खाल उतरवा देता है क्योंकि जो अपने चिरन्तन स्वामी से द्रोह कर सकता है, वह किसी अन्य के प्रति कैसे निष्ठावान् हो सकता है ? अन्य पात्र हम्मीरमहाकाव्य में कई अन्य महत्त्वपूर्ण पात्र हैं, जिनकी चारित्रिक विशेष - ताओं का कवि ने रुचिपूर्वक चित्रण किया है । विस्तारभय से यहाँ उनका सामान्य सर्वेक्षण किया जाता है । वाग्भट काव्य का एक निराला तथा अतीव आकर्षक पात्र है । वह नीतिज्ञों का गुरु ( वाग्भटः प्रतिभाभट: - ४.६३ ) तथा चौहान वंश की लड़खड़ाती राज्यलक्ष्मी ITI आश्रय-स्तम्भ है । अपनी नीति - कुशलता के कारण वह प्रह्लादन का प्रधानामात्य तथा उसके बाद अवस्यक वीरनारायण का संरक्षक नियुक्त किया जाता है । ४६. वही, ११.१५-५७ ५०. स महौजस्तया शक्यो जेतुं नाभूदियच्चिरम् । व्रतेस्थिधीतयेदानीं लीलयैव विजीयते ॥ वही, ६.१०४ ५१. पतिष्यच्चाहमानीयराज्यश्रीवल्लीपादपम् । वही, ४.७३
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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