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________________ हम्मीरमहाकाव्य : नयचन्द्रसूरि २७६ किन्तु हम्मीर के चरित्र का एक अन्य पक्ष भी है, जिसमें अवगुणों के अतिरिक्त और कुछ दिखाई नहीं देता । वह महाक्रोधी है । उसका क्रोध कभी-कभी विवेकहीनता की सीमा तक पहुँच जाता है । धर्मसिंह को भीमसिंह के वध के लिये उत्तरदायी ठहरा कर उसे नेत्रहीन तथा नपुंसक बनवा देना उसके क्रोधावेश की पराकाष्ठा है । उसका व्यक्तित्व सर्वभक्षी लोभ से कलंकित है। वृद्धा पिता की शिक्षा की अवहेलना कर वह पदच्युत धर्मसिंह को पुनः प्रधान-पद पर केवल इसलिये प्रतिष्ठित कर देता है कि उसने, नर्तकी धारादेवी के माध्यम से, राजकोश की क्षतिपूर्ति करने का संकेत दिया था । धर्मसिंह कोश भरने के लिये प्रजा का क्रूरतापूर्वक पीड़न करता है । करों के असह्य भार से प्रजाजन विकल हो उठे, किन्तु हम्मीर न केवल उसके अपराधों को क्षमा कर देता है अपितु स्वयं पूर्णत: उसके वश में हो जाता है और धर्मसिंह धीरे-धीरे उसका प्रेमपात्र बन जाता है। द्रव्यः संपूरयन् कोशं राज्ञोऽभूद् भृशवल्लभः । वेश्यानां च नृपाणां च द्रव्यदो हि सदा प्रियः ॥ ६.१६६ प्रधानमंत्री के धनसंग्रह ने उसे इतना लोभान्ध कर दिया कि वह, उसके लिये, स्वामिभक्त भोज को भी अपमानित करके देश छोड़ने को विवश कर देता है। जगाद भूपतिर्यासि परतः परतो न किम् । विना भवन्तमप्येवं पुरं संशोभते पुरा ॥ ६.१८६ ।। हम्मीर के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी दुर्बलता यह है कि वह शासक होता हआ भी कूटनीति से अनभिज्ञ है। महिमासाहि के अलाउद्दीन को मारने की अनुमति माँगने पर उसकी यह उक्ति कि 'इसे मरवा कर मैं किससे युद्ध करूँगा' आदर्श युद्धनीति तथा क्षत्रियोचित शौर्य की परिचायक हो सकती है, पर इससे उसका कूटनीतिक दरिद्र्य व्यक्त होता है । इस कूटनीतिक चूक ने उसके संघर्ष की दिशा ही बदल दी। रतिपाल को यवन राज के शिविर में जाने की अनुमति देना तथा उस पर शत्रुपक्ष से मिलने का सन्देह होने पर भी उसे भावुकतावश क्षमा करना उसकी कूटनीतिहीनता का अन्य उदाहरण है । अपने व्यक्तित्व का उसका यह मूल्यांकन अक्षरशः सत्य हैध्रुव सपरिवारोऽपि दुर्मतिविभुरेव नः (१३.१०१)। उसे मानव-प्रकृति की भी परख नहीं है। उसमें अपने परिजनों की गतिविधियों तथा आचरण का विश्लेषण एवं यथार्थ मूल्यांकन करने की क्षमता नहीं है । इसीलिये प्रायः सभी उसे धोखा देते हैं । हम्मीर गुणसम्पन्न है, किन्तु उसका पतन उसकी भूलों के कारण ही होता है । वह ग्रीक ट्रेजेडी का आदर्श नायक बन सकता है । अलाउद्दीन दिल्ली का प्रसिद्ध यवन-शासक अलाउद्दीन हम्मीरमहाकाव्य का प्रतिनायक ४८. मुष्कयुग्मच्छिदा पूर्व तदृशौ निरचोकसत् । वही, ६.१५३
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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