SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन संस्कृत महाकाव्य है। जैन कवियों के ऐतिहासिक महाकाव्यों के अतिरिक्त सभी महाकाव्यों के कथानक पुराणों से गृहीत हैं। इसीलिये उनमें, चाहे वे शास्त्रीय हों अथवा पौराणिक या शास्त्रकाव्य, बहुधा तीर्थंकरों आदि शलाकापुरुषों के समन्वित अथवा पृथक् चरित निरूपण करने में कविकर्म की सार्थकता मानी गयी है। इस पुराणाश्रय के कारण जैन महाकाव्य, तात्त्विक रूप से पुराणों से भिन्न होने पर भी, पुराणापेक्षी हैं। शास्त्रीय महाकाव्यों के रचयिताओं ने पुराण-प्रथित कथानक के अकाव्योचित सन्दर्भो की यथामति कांट-छांट की है परन्तु उनकी प्रचारधर्मी अन्तर्वत्ति उन्हें महाकाव्य में पौराणिकता का समावेश करने को बाध्य करती है। काव्यनायक के कार्यकलाप में देववर्ग का अविच्छिन्न साहचर्य, उसकी विषय-पराङ्मुखता, स्वधर्म का गौरवगान तथा परधर्म की गर्दा पौराणिक रचना के अधिक अनुकूल हैं। शास्त्रीय काव्यों में सुनियोजित देवस्तुति भी उसी वृत्ति से प्रेरित है। कालिदास ने भी अपने दोनों काव्यों में एक-एक स्तोत्र का समावेश किया है किन्तु उनके स्तोत्र कथावस्तु के स्वाभाविक अवयव हैं और उनमें प्रवाहित दर्शन की अन्तर्धारा काव्यगुणों को आहत किये बिना उन्हें उच्च धरातल पर प्रतिष्ठित करती है। जैन काव्यों में स्तोत्रजानबूझ कर आरोपित किये गये प्रतीत होते हैं। उनका काव्यगत अथवा दार्शनिक महत्त्व भी अधिक नहीं है। वास्तविकता तो यह है कि जैन कवियों के शास्त्रीय महाकाव्यों से पौराणिकता रह-रह कर झांकती है। पुराणोचित सामग्री को यथाशक्य छोड़कर, जैन कवियों ने, माघ आदि की भांति, अवशिष्ट कथानक को विषयान्तरों से मांसल बनाकर, काव्य शैली के अलंकरण के साथ प्रस्तुत किया है जिससे वर्ण्य विषय वर्णन-प्रकार की तुलना में गौण प्रतीत होता है। इस दृष्टि से उनका आदर्श कालिदास नहीं बल्कि पतनोन्मुख काल के वे कवि हैं, जो काव्य की कलात्मक सजावट को महाकाव्य का सर्वस्व मानते हैं। पौराणिक महाकाव्यों में, पुराण-गृहीत कथानक, आद्योपान्त उसी परिवेश तथा शैली में निरूपित हैं । पुराणों के अतिशय प्रभाव के कारण, इन काव्यों में, कर्मफल की अपरिहार्यता के प्रतिपादन के लिये, काव्यनायक के पूर्वभवों के विस्तृत वर्णन पाये जाते हैं, जिन्होंने दो-दो, तीन-तीन सर्ग, और कभी-कभी काव्य का आधा भाग लील कर कथानक को चकनाचूर कर दिया है। पौराणिक महाकाव्यों में अलौकिक तथा अति प्राकृतिक घटनाओं की भरमार है। सिद्ध, गन्धर्व, विद्याधर आदि देवी तथा अर्द्ध दैवी पात्र काव्यनायकों को अलौकिक शक्तियां, अमोघ मन्त्र तथा चित्र-विचित्र विद्याएं देकर, उनके मानवी रूप को दिव्यता में परिणत कर देते हैं। जैन कवियों ने अपने पौराणिक काव्यों में रोमांचकता का समावेश करने में भी कंजूसी नहीं की ६. इतिहासोमवं वृत्तमन्यद्वा सज्जनाश्रयम् ।-साहित्यदर्पण, ६.३१८
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy