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________________ 370 :: मूकमाटी-मीमांसा "जे एगं जाणइ, से सव्वं जाणइ जे सव्वं जाणइ, से एगं जाणइ ।” (आयारो - आचारांग, ३/७४) अर्थात् जो एक को जानता है वह सब को जानता है, जो सब को जानता है वह एक को जानता कश्मीर की विख्यात सन्त कवयित्री लल्लेश्वरी (१४वीं शताब्दी) कहती है कि शिव स्थल-स्थल पर, सर्वत्र विराजमान है, हिन्दू-मुसलमान में कोई भेद न कर । यदि तू बुद्धिमान् है तो अपने आपको - आत्मतत्त्व को पहचान ! वही वास्तव में शिव (परमात्मा) साथ तेरी जानकारी है : “शिव छुय् थलि थलि रोज़ान / मो ज़ान होन्द त मुसलमान । तुख अय छुख त पान् पर्ज़नाव / स्वय छै साहिबस सूति ज़ानी ज़ान । ” बाहर से भीतर जाने का वर्णन लल्लेश्वरी ने निम्न 'बाख' में इस प्रकार किया है कि गुरु ने उसे एक बात कही। उन्होंने कहा कि बाहर से भीतर चली जा । उस लली ने वही आदेश / उपदेश माना और दिगम्बरावस्था में नाचने लगी : "ग्वरन वोननम कुतुय वचुन / न्यबर दोयनम अंद्रिय अचुन । सुय गौ ललि म्य वाखत-वचुन / तवै म्य होतुम नंग नचुन ।” यहाँ यह विचारणीय है कि निर्गुण भगवान् की उपासिका लल्लेश्वरी ने अपने एक 'बाख' में महावीर स्वामी को 'जिन' रूप में स्मरण किया है : "शिव वा केशव वा जिन वा / कमलज़नाथ नामधारिन युद्द । म्य अबलि कासितन भव-रुज़/सु वा सु वा सुह् ||" अर्थात् शिव हो, या जिन (महावीर स्वामी) हो अथवा कमलनाथ ( गौतम बुद्ध ) हो, उसका कुछ भी नाम हो, मुझ अबला को भव-रुज (संसार की व्याधि) से मुक्त कर दे । आचार्य विद्यानन्द ने नारी को 'जाया, 'पत्नी' का अभिधान देते हुए कहा है: "नारी नर की जन्मदायिनी है, इसलिए उसे 'जाया' कहते हैं। वह पति की अर्धांगिनी होने पर 'पत्नी' कहलाती है। अर्धांगिनी का अर्थ है पति के सुखदुःख की समभागी ।” कुल - स्त्रियाँ व्यसनों में फँसे हुए पति को उत्थान की ओर ले जाती हैं। वह एक ऐसा मित्र है जिस पर विश्वास रखकर जीवन शान्ति से बिताया जा सकता है। नारी का इतिहास तप, त्याग और सेवा का पाठ सिखाता है। आचार्य श्री विद्यासागर ने 'जाया, 'पत्नी' शब्दों की भले ही यहाँ व्याख्या न की हो, उन्होंने दूसरे शब्दों में उनका समाहार कर दिया है । उन्होंने 'मूकमाटी' में 'अंगना' को अन्त में व्याख्यायित किया है, और 'माता' या 'मातृ' की व्याख्या पहले की है, जबकि ‘अंगना' के उपरान्त 'मातृ' शब्द की व्याख्या करनी चाहिए थी। 'मातृ' पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा है कि प्रमाण का अर्थ है ज्ञान और प्रमेय का अर्थ है ज्ञेय । सन्तों ने प्रमातृ को ज्ञाता कहा है। वस्तुतः मातृ-तत्त्व में ही जानने की शक्ति है और वह माता-पिता, पुरुष महापुरुष सब को जन्म देने वाली है, वह सब की जननी है, यही उसका मातृतत्त्व है : I "... यहाँ / कोई पिता- पितामह, पुरुष नहीं है जो सब की आधार-शिला हो, / सब की जननी / मात्र मातृतत्त्व है ।" (पृ. २०६ )
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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