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________________ आठवाँ व्रत गाथा - २६ मोहरि - मौखर्य - वाचालता । उचित-अनुचित का विचार किए बिना बोलते ही रहना, गप्पे लगाना, निरर्थक बातें करना; ये तीसरा अतिचार पापोपदेश के त्याग संबंधी है। अहिगरण संयुक्ताधिकरण । - १८९ अनावश्यक हिंसक साधन तैयार करना, हिंसक हथियारों को सजाकर तैयार रखना, गाड़ी, सवारी आदि पहले से ही जोड़ कर रखना, यह चौथा हिंस्रप्रदान संबंधी अतिचार है। भोग - अइरित्ते - अतिरिक्त भोग । आवश्यकता से अधिक प्रमाण में भोग विलास के साधनों को रखने से या अधिक भोग सामग्री रखने से जयणा भी नहीं पाली जा सकती एवं कभी तो विवेक भी क्षीण हो जाता है। अत: यह इस व्रत का पाँचवाँ अतिचार है। दंडम्मि अणट्ठाए, तइअम्मि गुणव्वए निंदे तीसरे गुणव्रतअनर्थदंडविरमण व्रत के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो, उसकी मैं निन्दा करता हूँ। - इस व्रत को स्वीकार करने के बाद श्रावक को खूब सावधान रहना चाहिए। महापुण्य से मिले हुए मन, वचन, काया के योगों का निरर्थक उपयोग नहीं करना चाहिए। खूब सावधानी से रहना चाहिए । यथायोग्य स्थान पर जहाँ कभी उपयोग करना पड़े वहाँ भी कभी प्रमाद का पोषण या अनावश्यक हिंसा न हो जाए उसकी सावधानी रखनी चाहिए। ऐसा होते हुए भी प्रमाद के अधीन होकर लोकप्रवाह में या संज्ञाओं की तीव्रता के कारण ऊपर बताए हुए अथवा उनके अलावा, इस व्रत विषयक किसी भी छोटे-बड़े दोष का सेवन हुआ हो तो उनका स्मरण करके अंत:करणपूर्वक उनकी निन्दा करनी चाहिए, एवं पुनः ऐसे दोषों का सेवन न हो जाए उसके लिए यत्नमय बनना चाहिए। इस गाथा का उच्चारण करते हुए श्रावक सोचता है कि, 'संयमी जीवन तो दुष्कर है ही, परंतु देशविरति धर्म का पालन भी आसान नहीं है। जीवन में पूर्ण जागृति हो, प्रमादादि दोषों से मुक्त होने का हर प्रयत्न
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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