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________________ (29) थाये बोही बाण || नाखे मलमूत्र यागमां रे, ए तसु कर्म निदान | सो० ॥ ६ ॥ जा० ॥ जे थाये नर कूबडो रे, हीं बेवड होय ॥ कोण कर्म कीधां ते णे रे, जगवन् जांखो सोय ॥ सो० ॥ ७ ॥ ज० ॥ उंट बलद जेंसा बालकां रे, घाठां तेदनां चर्म ॥ लोने जार घणा जरया रे, कीधां एह कुकर्म ॥ सो० ॥ ८ ॥ ॥ जा० ॥ नपुंसकपणुं जे लहे रे, कोण करणी करी दीन || पुरुष नहि नारी नहि रे, माणसमां दी न ॥ सो० ॥ ए ॥ जा० ॥ माणस घोटक ढोरने रे, समारे सुख काम ॥ कुमति गलकंबल छेदने रे, वेद नपुंसक पाम || सो० ॥ १० ॥ जा० ॥ नरके जाये जीवडा रे, पामे बहुलां दुःख ॥ अनंत शीत ताप वेद ना रे, अनंती सदे तृष भूख ॥ सो० ॥ ११ ॥ जा० ॥ तेणे जीवे कोण कीधला रे, कर्मना बंध कठोर ॥ सुर वेदना खेत्रवेदना रे, जे पामे दुःख रोर || सो० ॥ १२॥ जा० ॥ महारंज महामूर्ख ना रे, अस्त चोरी परदार ॥ पंचेंद्रियवध फल जखे रे, नरक लहे अवतार ॥ सो० ॥ १३ ॥ जा० ॥ दोष टाले जो एहवा रे, जवियण देडे याण || दशमी ढाल पूरी थइ रे, वीर तपी ए बाप ॥ सो० ॥ १४ ॥ ना० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005369
Book TitleKarmvipak athwa Jambu Prucchano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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