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________________ (२७) ॥दोहा॥ तिर्यंचमांहे ऊपजे, जीव लहे पुःख जोर ॥ तेणे संच्यां पूरवे, केहां कर्म कठोर ॥१॥ थाप काजे जी जी करे, परनें कामे अपूठ ॥ ममनो पार न को खहे, मुख मोतुं चित्त बु० ॥२॥ जे धूतारे लोकने, हैये होय रोमांच ॥ कर्म करे जे एहवां, पूरव लव तिर्यच ॥३॥ पुरुष वेद तजी स्त्रीपणुं, कोण पापे पामंत ॥ कूड कपट बल चपलता, मायाये महिला हुँत ॥४॥ चोग न पामे ते रति, बती वस्तु न खवा य॥ करे अंतराय आपे नहि, जोग रहित ते थाय । ॥५॥ रीशे धड हड़तो मरे, मातो मान विशेष ॥ खोन खेहेरमां काल करी, कुगति करे प्रवेश ॥६॥ ॥ ढास अगीयारमी॥ " ॥चरणाली चामुंडा रण चढे ॥ ए देशी॥ ॥ वाघ सिंह क्रोधे होय, माने गर्दन श्वान रे॥ नोल साप होय खोजथी, काणो केणे निदान रे ॥१॥ प्रश्न उत्तर गुरुजी कहे, सांजलजो सहु. कोय रे ॥ पांति जेदना पापथी, आंखे काणो होय रे॥प्रभ०॥ ५.२ ।। अजगर केणे कर्मे होये, पेट घसंतो चाले रे ॥ विद्यामद अति घणो करे, कोने अदर नाले रे॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005369
Book TitleKarmvipak athwa Jambu Prucchano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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