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________________ ( २६ ) हुये, तव मरगीनी व्याध ॥ २ ॥ खंधे जारटले नहि, क रणी केही कीध | स्वामी अर्थ साधे नहिं, व्याप स्वार्थ मेली || ३ || माढी मूळ होये नहिं, पांपणना जाये वाल ॥ मारे जे जायेजने, दो कन्यानो बाल ॥ ४ ॥ ॥ ढाल दशमी ॥ ॥ कपूर दोये प्रति ऊजलो रे ॥ ए देशी ॥ ॥ दाड गंजीर हिया होडी रे, मोहोटा रोग कहाय ॥ जेहने यावी ऊपजे रे, कवण कर्म सहाय ॥ सोजागी सोहम, जाखो कर्मनी वात ॥ जे केवली विष न कहात || सोजागी सोहम ॥ जा० ॥ १ ॥ एकथी । बालक परनां लेने रे, वेचे परदेशे जाय ॥ महि माइना मोहथी रे, दाम गंजीर तस थाय ॥ सो० ॥ २ ॥ जा० ॥ धन पाम्युं थिर नवि रहे रे, जिहां तिहांथी जाय ॥ जन्मांतरना तेहना रे, कवण कर्म उपाय ॥ सो० ॥ ३ ॥ जा० ॥ संन्यासी योगी जती रे, अथवा लिंगी कोय ॥ द्रव्य संच्यां खाये गृही रे, पामे धन नही सो यः ॥ सो० ॥ ४ ॥ जा० ॥ जो कदाच धन संपजे रे, * मि. चोर अन्याय ॥ नृप सघलुं लूंटी लीये रे, यंते खेरु श्राय ॥ सो० ॥ ५ ॥ जा० ॥ प्रतिसार होये जेहने रे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005369
Book TitleKarmvipak athwa Jambu Prucchano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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