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________________ (२५) विकीध, थावर ने त्रसनी॥६॥ कुटुंब तणी होये हा ण, के जेहने सरवथा।। तेह तणां जे पाप, कहो जे हो ये यथा ॥ माजीने नवे आवी, मारे जे माउला ॥ तणे कुटुंबनो नाश, जाणो कृत पाउलां ॥ ७ ॥ राते नवि दीसंत, दीहे आंख निर्मली ॥ रातअंधो केणे पाप, कहो मुज केवली ।। अरुणोदय मध्यान्ह, संध्याये जे जमे ॥ खाय पीये मध्य रात्रि, रात्यंधो तसु. दमे ॥ ना रांधण वायनी पीड, हाथे पगे करी ॥ कीयां कहेवां कर्म, कहो करुणा करी ॥ घोडा घोडी उंट, फेरे जे छ मति ॥ रांघण तेहने पाप, जाणो होये बती॥ ए॥ वली जगंदरनो व्याधि, राध निकले घण। ॥ असुख था पोहोर, थाय जे रेवणी ॥ फोडे कूकड इंक, पीये रस रसे करी॥ तेह पापने रोग, होये जगंदरी ॥१०॥ एह जाणी प्राणी, जे झूषण टालशे॥ श्रीजिनवरनी थाण, सूधी जे पालशे ॥ ते लेहेशे शिवसुख, फुःख नहिं ले कदा ॥ नवमी ढाले वीर, लहे सुखसंपदा ॥११॥ ॥दोहा॥ ॥ बेगं फिरतां बोलतां, जिहां तिहां अंतराल । वार थावे फुःख दीये, कवण कर्मनी चाल ॥१॥जश् शिकारे जीवने, मारे विण अपराध ॥ तेह कर्म उदय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005369
Book TitleKarmvipak athwa Jambu Prucchano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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