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________________ (१५) जांखो मुफ इष्ट रे ॥ कर्म॥११॥ एक नर दान बहु विध दिये रे, आपे ऊलट थाणि ॥ निंदे तेहने नित्य प्रत्ये रे, तुंगमुखो ते जाण रे॥ कर्म॥१२॥ गर्ने शा ल थई रहे रे, वधे नहिं जे बाल ॥ पूरव नव तेणे आद स्यां रे, कवण कर्म विकराल रे ॥ कर्म ॥ १३ ॥ जातमात्र ते बालने रे, विवाहनी धरे शंक ॥ मारे पाडे ग. ने रे, तेहने शाल निःशंक रे । कर्म॥१४॥ स्थानज्रष्ट नर जे हुवे रे, पामे नहि किहां गम ॥ पापप्रकृति कोण तेहने रे, ते संजलावो खाम रे ॥ कर्म ॥ १५ ॥ मारग अथ जल थानके रे, वृद्ध महाफल नार ॥ पशु पंखी पंथी जिहां रे, ख्ये विशराम अपार रे ॥ कर्म ॥ १६ ॥ कापे एहवा वृक्षने रे, तेहने गम न होय ॥ जि हां जाये तिहां पुःख सहे रे, बेसण न दिये कोय रे ॥ १७ ॥ कोढ रोग घट जेहने रे, धोबुं थाये गात्र ॥ मोहो टा माणस जेहगुंरे, बोले नहीं दणमात्र रे ॥ कर्मः॥ १७॥ लोपे वृत्ति जे साधुनी रे, गोवध चोरी जूठ ॥ कन्या धन जे वावरे रे, कूलां कुंपण कुहरे ॥ कर्म ॥ १५ ॥ खूटे खांते ख्यालशुं रे, ते नर कोढी रे थाय ॥ कीधां कर्म न बूटीये रे ॥ जब तब फुःख दे श्राय रे कर्मः ॥ ३०॥ मात पिता नारी तणो रे, बेटा बेटी वि; Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005369
Book TitleKarmvipak athwa Jambu Prucchano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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