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________________ (१६) योग ॥ जेहने श्रावी ऊपजे रे, कवण कर्मनो नोग रे ।। कर्म ॥२१॥ गाय वत्स-माय बापनो रे, पंखी पुत्र विडोह ॥ पाडे पापी तेहने रे, मलवाने होये रोह रे ॥ कर्म ॥२२॥ सूत्रनी वाणी सांजली रे, टाले दूषण पूर ॥वार कहें ढाल पाचर्म। र, पामे सुख जरपूर रे ॥ कर्मः ॥ २३ ॥ सर्व गाथा ॥ १६ ॥ ॥दोहा॥ ... ॥नंदन श्रथवा नंदिनी, जन्म पामे माय बाप ॥ मरण धर्म पामे तुरत, कवण कर्म संताप ॥ १॥ शरणे आव्या जीवने, जे शरणुं नवि थाय ॥ परनव तेदना पापथी, शरण विना सीदाय ॥॥ जलोदरे करी जे पुःखी, पेट न होवे नर्म ॥ तेणे संच्या कोण पागले, न वमां अधिक अधर्म ॥३॥ जाति पांति गणे नहि, खाये जद अन्नद ॥ विरति नहिं कोई वस्तुनी, जलोदर थाये प्रत्यक्ष ॥४॥ ॥ ढाल बही॥ ॥ हरीया मन लागो॥ ए देशी॥ कंगनाल रंगमाल जे. दांते जीने छःख रे॥सोहम खामी कहो ॥ लंब होठ होय बोबडो, पाके जेहनुं मुख रे । सो ॥१॥ अकारज कीधां किस्यां, पूरव न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005369
Book TitleKarmvipak athwa Jambu Prucchano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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