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________________ (१४) कर्मकथा कहो ॥ ए आंकणी ॥ गणधर गुण नंमार रे ॥ कर्म ॥ अमृत वाणी वरसता रे, जगजीवन हितका र रे॥ कर्म ॥२॥कोह्यो विणो जे होय रे, कोइन वांडे जास ॥ ते वहोरावे साधुने रे, ए फल जाणो तास रे॥ कर्म ॥३॥ खयन व्याधि तस ऊपजे रे, रोग स हुनो रे वास ॥ रात दिवस खू खू करे रे, कफ तणो आवास रे॥ कर्म ॥४॥ हाड तणो विक्रय करे रे, जे वली विष व्यापार || मधु पाडे वनमां जरे, क्षयरोगी निर्धार रे॥ कर्म॥५॥ जन्मथकी जे आंधलो रे, पाल प्रवालां गय | नेत्र रोगी बहजातिना रे, कवण कर्म अंतराय रे ॥ कर्मः ॥ ६॥ परस्त्री निरखे रागगुं रे, परनारीशं प्रीत ॥ काज विणासे पारकुं रे, आंख तणी एरीत रे॥ कर्म ॥७॥ आधाशीशी अति घणुं रे, मा थे पीड करत ॥ ऊंचं जोश नवि शके रे, कोण अशुन आचरंत रे । कर्म॥ ॥ अग्नि साखे आदरे रे, श्यामा आयत कीन ॥ चित्त ताहरुं ने मारुं रे, निन्न गणवा लयलीन रे । कर्म ।।।। परणी नारी परहरी रे, पररमणीशुं रंग ॥ घरनावे जे थापणे रे, तिण शिर साख प्रसंग रे॥ कर्म० ॥ १० ॥ सूयर सर जेदने रे, मुखाई छोये अनिष्ट ॥ तेणे श्यां पाप समाचख्यां रे, ते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005369
Book TitleKarmvipak athwa Jambu Prucchano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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