SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१३) जे, लाला सूतां बेग रे श्राव । जीहो अणदीतुं दी कहे, लाला तसु फल मन संजाव ॥ कृपा ॥२०॥ जी हो ए उपदेश सोहामणो, लाला सांजलि टालो रे दोप॥जीहो चोथी ढाल पूरी थइ, लाला वीर कहे पुण्य पोष ॥ कृपा॥१॥ ए॥ ॥ दोहा ।। ॥ चार पांच पुत्री हुवे, ते सघली रमाय ॥ पूरव जव तिण प्राणीये, कीधा कोण अन्याय ॥१॥ चैत्य कूप सर वावनां, करे विघन धन खाय ॥ग्रामादिक बा ले बली, जनमांतर नर हाय ॥२॥ मंद वाय पीडा क रे, पाप तेहनां नांख ॥ मद्य मांस जे नर नखे, मरणांत फल अनिलाख ॥३॥ काने कां न सांजले, कोण कस्यां कुकर्म ॥ कहो पूज्य! जंबू नणे, वलतुं कहे सुधर्म ॥४॥ साधु वचन नवि सांजले, सुणे नहीं सिझांत ॥ अणसांजव्युं कहे सानदयु, बहेरो थाय इम ब्रांत॥५॥ ॥ढाल पांचमी ॥ ॥ पुण्य प्रशंसिये ॥ ए देशी॥ ॥ वात गुल्म होये जेहने रे, पेटे थाये रे पीड़ा । खाधुं धान्य जरे नही रे, कवण कर्मनी जीड रे ॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005369
Book TitleKarmvipak athwa Jambu Prucchano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy