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________________ अध्ययनमां (पृ० ४१४ ) बौद्धोना ए मन्तव्य के 'अमुक कर्म पापयुक्त छे के पापरहित छे तेनो निर्णय ते कर्म आचरनार मनुष्यना आशय उपर आधार राखे छे, खूब खंडन अने उपहास करवामां आव्यो छे. ___ अंगुत्तरनिकाय ३,७०,३ मां निर्गठ श्रावकोना आचारोनुं वर्णन आपेलुं छे. ते भागनुं नीचे प्रमाणे भाषान्तर आपुं . 'हे विशाखा, निगन्ठ नामे ओळखातो श्रमणोनो एक संप्रदाय छे. तेओ श्रावकोने आ प्रमाणे उपदेश आपे छे. “ हे भद्र ! अहिंथी पूर्वदिशा तरफ एक योजनप्रमाणभूमिथी बहार रहेता जीवतां प्राणिओनी हिंसाथी तमारे विरमवृं, , तेवीज रीते दक्षिण, पश्चिम अने उत्तरदिशा तरफनी योजनप्रमाणभूमीथी बहार रहेता प्राणिओनी हिंसाथी विरमg" आरीते तेओ केटलांक जीवतां प्राणिओने बचाववानो उपदेश आपी दयानो उपदेश करे छे; अने एज रीते वळी तेओ केटलांक जीवतां प्राणिओने न बचाववानो बोध करी क्रूरता शिखवाडे छे. ' ए समजावq कटिन नथी, के आ शब्दो जैनोना दिग्विरतिव्रतने उद्देशीने कहेला छे के, जे व्रतमां श्रावकने अमुक हद बहार मुसाफरी के व्यापार विगेरे नहिं करवा संबंधिनो नियम उपदेशवामां आव्यो छे. आ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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