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________________ ( ३९ ) माटे दण्ड (शिक्षा) शब्दनो उपयोग करे छे. ' जो के आ उल्लेख साचो छे परन्तु संपूर्णरूपे नहीं. कारण के जैनसूत्रोमा कर्म अर्थमा पण ' कर्म ' शब्दनो तेटलोज उपयोग थएलो छे. अने दण्ड शब्दनो पण तेटलोज थलो छे सूत्रकृतांग २, २ (बृ.३१७) मां १३ प्रकारना पाप कर्मनुं वर्णन करेलुं छे नेमां पांच स्यलमां 'दण्डसमादान' शब्द आवेलो छे अने बाकीनां स्थलमा 'किरिया - थान' शब्द आवेलो छे. निगंठ उपाली विशेषमां जणावे छे के कायिक, वाचिक अने मानसिक एम ऋण प्रकारनो दंड छे. उपालीनुं आ कथन, स्थानांगसूत्रना बीजा प्रकरणमा ( जुओ इन्डि. एन्टि पु. ९, पृ० १५९ ) जणावेला जैनसिद्धांतनी साथै पूर्ण मळतं आवे छे. उपालीनुं बीजुं कथन के, जेमां ते निगठोने मानसिक पापो करतां कायिक पापोने वधारे महत्व आपनारा जणावे छे, ते कथन जैनसिद्धांत साथै बराबर मळतुं आवे छे. सूत्रकृतांग २,४ ( पृ० ३९८ ) मां एवा एक प्रश्ननी चर्चा करवामां आवी छे के अजाणपणे कराएला कृत्यनुं पाप लागे छे के नहीं, त्यां आगळ स्पष्टरीते जणावेलुं छे के निश्चितरीते तेवुं पाप लागे छे. ( सरखावो पृ. ३९९ टिप्पण ६ ) वळी तेज सूत्रना ६ ठा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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