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________________ ( ३८ ) पासे गयो अने बुद्धनी मुलाखातना परिणामे ते तेनो अनुयायी बन्यो. आ वृत्तांतमां निगंठोने जे क्रियावादी जणाववामां आव्या छे, ते बाबत आ पुस्तकमां अनुवादित सूत्रोना उल्लेखथी सुसिद्ध थाय छे: - सूत्रकृतांग १,१२,२१, (पृ. ३१९ ) मां जणावे छे के ' तीर्थकर - अर्हन्ने क्रियावाद प्ररूपवानो - उपदेशवानो अधिकार छे' आचारांगसूत्र १,१,१, ४ ( भाग १, पृ. २) मां पण आ विचार, आ प्रमाणे दर्शाववामां आव्यो छे:- ' ते आत्माने माने छे, जगतूने माने छे, फळने माने छे, कर्मने माने छे, ( एटले के- ते आपणांज करेला छे अने जे आ प्रमाणेना विचारोथी स्पष्ट जणाय ले. ) ते कर्म में कर्यु छे; ते बीजा पासे करावीश; ते हुं बीजाने करवा दईश. ' इत्यादि. ---- महावीरना जे बीजा शिष्यने बुद्धे पोतानो अनुयायी बनावी वो हतो तेनुं नाम उपाली हतुं, मझिमनिकायना ५६ मा प्रकरणमा जणाव्या प्रमाणे तेणे बुद्धनी साथ, ए बाबतनो वाद कर्यो हतो के* निगंठ नातपुत्त कहे छे तेम कायिक पाप मोटुं छे, के बुद्ध माने छे तेम मानसिक पाप मोटुं छे ? ए संवादना प्रारंभमां उपालि कहे छे के मारा गुरु साधारणरीते कर्म अथवा कृत्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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