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________________ (७९) लेमें बांध मैं अनेक राजा प्रजाके सभाविजय करे देखा व्यर्थ मगज मारना हैं इतनाही फलसाधनांश होता है कि राजे लोग जानते समझते हैं फलाना पुरुष बडा भारी विद्वान् है परंतु आत्माको क्या लाभ होसकता देखा तो कुछ भी नहीं। आन प्रसंगबस रेलगाडीसे उतरके बठिंडा राधाकृष्णके मंदिरमें बहुत दूरसें आनके डेरा किया था सो एक जैनशिष्यके हाथ दो पुस्तक देखें, तो जो लोग ( दो चार अच्छे विद्वान् जो मुझसे मिलने आये ) थे कहने लगे कि ये नास्तिक ( जैन ) ग्रंथ है इसे नहीं देखना चाहिये अंत उनका मूर्खपणा उनके गले उतारके निरपेक्षबुद्धिके द्वारा विचारपूर्वक जो देखा तो वो लेख इतना सत्य वो निष्पक्षपाती लेख मुझे देखपडा कि मानो एक जगत् छोडके दूसरे जगत्में आन खडे हो गये. और आबाल्यकाल ७० वर्षसे जो कुछ अध्ययन करा वो वैदिकधर्म बांधे फिरा सो व्यर्थसा मालूम होने लगा. जैनतत्त्वादर्श वो अज्ञानतिमिरभासकर इन दोनो ग्रंथोंको तमाम रात्रिंदिव मनन करता बैठा वो ग्रंथकारकी प्रशंसा बखानता बठिंडेमें बैठा हूं सेतुबंधरामेश्वरयात्रासे अब मैं नैपालदेश चला हूं। परंतु अब मेरी ऐसी असामान्य महती इच्छा मुझे सताय रही है कि किसी प्रकारसे भी एकवार आपका मेरा समागम वो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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