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________________ (७८) तत्त्वनिर्णयप्रासाद ग्रन्थ पृष्ट १२६ मां प्रगट थएलो पत्र नीचे प्रमाणे छे पूर्वपक्ष- ऐसें महात्मा योगजीवानंदसरस्वतीस्वामीजी कौन है ? उत्तरपक्ष-संवत् १९४८ आषाढ सुदि १० मीका लिखा एक पत्र गुजरांवाले होके हमारे पास ( अर्थात् ग्रंथकार आत्मारामजी महाराजाके पास ) माझापट्टी में पहुंचा तिस पत्रको वांचके तिस लिखनेवाले निःपक्षपाती और सत्यके ग्रहण करनेवाले महात्माकी बुद्धिको कोटीशः धन्यवाद दीया और तिसके जन्मको सफल माना सो असली पत्र तो हमारे पास है तिसकी नकल अक्षर अक्षर हम यहां भव्यजन पाठकोंके वांचने वास्ते दाखिल करते हैं. स्वस्ति श्रीमज्जैनेंद्रचरणकमलमधुपायितमनस्क श्रीलश्रीयुक्त परिव्राजकाचार्य परमधर्मप्रतिपालक श्री आत्मारामजी तपगच्छीय श्रीमन्मुनिराजबुद्धि विजय शिष्य श्रीमुखजीको परिव्राजक योगजीवानंदस्वामी परमहंसका प्रदक्षिणात्रयपूर्वकं क्षमाप्रार्थनमेतत् ॥ भगवन् व्याकरणादिनानाशास्त्रोंके अध्ययनाध्यापनद्वारा वेदमत ग -- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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