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________________ (21) जापति की तो कृतकृत्यता भी विलक्षण है जब महादेव बाबा कृतकृत्य ठहरे तो उनको धर्म करने से क्या मतलब ? // 4 // यदि पण्डितजी कहें की महादेवजी पार्वती के मान से खिन्न होकर अपनी मौजके लिये यह सब कारवाई करते हैं तो धन्य है आपके महादेवजी को, जो पार्वती के पैरोंमें भी अपना सिर झुकाने को भी तत्पर हैं और यदि महादेव इस संसार को क्रीडासे करते हैं तो फिर उसकी वीतरागता कहां रही !, वीतरागी होकर सामान्य जीव भी क्रोडा नहि करता है तो वीतराग होने पर भी महादेवजी छोटे बच्चे की तरह खेल करने लगे तब तो महादेव की तरह क्रीडा करने पर भी सब वीतराग कहलावैगे // 5 // और यदि शास्त्रीजी कहैं की प्राणियों को निग्रह और अनुग्रह करने के लिये यह सब तकलीफ महादेवजी उठाते हैं, तब भी महादेव जी प्रजापालक राजा की तरह कभी वीतराग और वीतद्वेष नहीं हो सकते, और यह नियम तो खानुभवसिद्ध है कि जो कार्य करने में आता है उसके आगे कर्ता को भी उस कार्य की तरह परिणत होना चाहिये, तो जब महादेवजी कहीं भी अनुग्रह करेंगे तब वे सरागी कहे जायेंगे और कहीं निग्रह करें तो वे संद्वेष होजाते हैं, यदि निग्रह अननुह करने पर भी जो महादेवजी को ईश्वर का टाइटल दिया जावे तो हमारे निग्रह, अनुग्रह के कता महाराजा पञ्चम जार्ज को भी साक्षात् ईश्वर माननेमें क्या हरज है ? // 6 // यदि पण्डितजी फरमावे कि अपने
SR No.004479
Book TitleMahamhopadhyay Shree Gangadharji ke Jain Darshan ke Vishay me Asatya Aakshepoke Uttar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSacchidanand Bhikshu
PublisherShah Harakhchand Bhurabhai
Publication Year1913
Total Pages50
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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