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________________ धमनियाँ हृदय से अलग हैं, अतः वे कभी भी विश्रांति नहीं लेतीं। इनमें सदैव तनाव रहता है। हृदय के आकुंचन-काल में धमनियों में दाब बढ़कर पारे के एक सौ बीस मिलीमीटर दबाव के बराबर या इससे भी अधिक हो जाता है। हृदय के लघु विश्रांति-काल में दाब घटकर सत्तर या अस्सी हो जाता है / यह दाब हृदय के द्वितीय स्पंदन तक रहता है / तत्पश्चात् पुनः एक सौ बीस हो जाता है। निम्नतर प्रसरणकालीन दाब बहुत महत्वपूर्ण है। यदि यह दाब अधिक हो तो वह उच्च रक्तचाप या उच्च तनाव की प्रारंभिक अवस्था का सूचक है। रक्तचाप पर कई बातों का प्रभाव पड़ता है / इस पर संवेदनात्मक स्थिति का बहुत अधिक असर पड़ता है। क्रोध और भय की स्थिति में रक्तदाब या रक्तचाप सामान्य से बहुत ऊँचा हो जाता है। भोजन ग्रहण-क्रिया से रक्तचाप कुछ उच्च हो सकता है। शुद्ध व्यायाम भी रक्तचाप में वृद्धि करते हैं / विश्राम की स्थिति में रक्तचाप सामान्य हो जाता है / इस प्रकार प्रतिदिन इसमें उतार-चढ़ाव होता रहता है। .... शरीर की कुछ आंतरिक रचनायें रक्तदाब को नियंत्रित करती हैं। उपवृक्कीय ग्रंथि शक्तिशाली रस (adrenalin) का निर्माण करती है। यह रासायनिक पदार्थ छोटी रक्त वाहिनियों का आकुंचन करता है जो कि रक्तचाप का कारण है / जबड़ों के धरातल के कुछ नीचे गले में स्थित ग्रीवा-कुहर नामक दो छोटे अंग रक्त के दाब तथा उसके प्रवाह पर नियंत्रण रखते हैं। यदि रक्तदाब निम्न होने लगता है तो इनके द्वारा संकेत मस्तिष्क में भेज कर सचेत कर दिया जाता है / फलतः तुरंत ही यह केशिकाओं को संकुचित होने का आदेश प्रसारित करता है और रक्तचाप पनः उच्च हो जाता है। यदि उच्च रक्तचाप की स्थिति हो तो विपरीत क्रिया होती है, अर्थात केशिकाओं के प्रसारण से रक्तदाब को न्यून किया जाता है / अतः शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अभिसरण की क्रिया विधिवत् होती है / इस उद्देश्य से उपरोक्त प्रक्रिया अविराम चलती रहती है। - अनेक व्यक्ति उच्च रक्तचाप से पीड़ित रहते हैं। इस उच्च रक्तचापं का कारण क्या है? इसके अनेक कारण हो सकते हैं / लगातार श्रम तथा तनाव इसका प्रमुख कारण है। जीवन के सामान्य उतार-चढ़ाव का प्रभाव कुछ लोगों पर असाधारण रूप से पड़ता है / घबराहट की स्थिति के परिणामस्वरूप कोशिकाओं में बहुत अधिक संकोचन होता है। यदि सदैव यही मानसिक स्थिति रही तो उच्च रक्तचाप स्थायी हो जाता है। समस्या सामान्य या उच्च * रक्तचाप की नहीं है परन्तु इस स्थिति के कारण मस्तिष्क हृदय, वृक्क, नेत्र 381
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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